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________________ धन्य-चरित्र/207 उसे आशीर्वचन देकर आगे बढ़ा। मार्ग में गमन करते हुए विचार करने लगा-"इन आभरणों को आगे अतिभय युक्त मार्ग में कैसे वहन करूँगा? अतः पहले नगर में जाकर इन्हें बेचकर रोकड़ा रूपया लेकर बाद में भव्य व्यवहारी की दुकान में जाकर ब्याज में जमा करके लेख करवाकर फिर सुखपूर्वक निर्भय होकर घर को जाऊँगा।" इस प्रकार विचार करके नगर में आया। नगर मे प्रवेश करके चतुष्पथ में उस प्रकार के व्यक्ति को खोजने लगा। तब बाजार में स्थित वही स्वर्णकार उसे देखकर सोचने लगा-'यह तो वही ब्राह्मण है, जिसने मुझे कुएँ से निकाला था।' बगल में अमूल्य मुद्रादिक की गाँठड़ी देखकर सोचा-'देशाटन आदि करते हुए इसने धन-सुवर्णादि प्राप्त किया हो, ऐसा प्रतीत होता है। अतः यह अगर इसे बेचे, तो मेरा काम हो जायेगा।' इस प्रकार विचार करके दूकान से उठकर त्वरित गति से विप्र के पास जाकर कहा- "अहो! आज मेरे भाग्य जागृत हुए। आज मेरे घर में बिना विचारे अमृत-मेघों की वृष्टि हुई है। आज मेरे घर में स्वयं कामधेनु चलकर आयी है। आज मेरे मनोरथ सफल हो गये, जिससे कि आप जीवित मिल गये।" इस प्रकार बोलते हुए द्विज के चरणों में मस्तक रखा । क्षणभर उसी स्थिति में रहकर फिर उठकर हाथों को जोड़कर विज्ञप्ति करने लगा-'स्वामी! मेरे घर पर पधारिये। अपने चरण कमल से घर को पवित्र कीजिए।' इस प्रकार शिष्टाचार दिखाते हुए वह ब्राह्मण को अपने घर ले गया। भोला ब्राह्मण अति चाटु वचनों को सुनकर प्रसन्न होता हुआ विचार करने लगा-"यह कोई अत्यधिक गुण-ग्राहक प्रतीत होता है। मेरे किये उपकार को अभी तक नहीं भूला है। यह अत्यधिक सुजात दिखायी देता है। इससे क्या छिपाऊँ? यह मेरा सारा कार्य कर देगा। अतः व्याघ्र द्वारा प्रदत्त आभूषण इसे दिखाता हूँ। इसे ही बेचकर रोकड़ा ग्रहण कर लूँगा।" इस प्रकार विचार करके कहा-“हे भद्र! मेरे पास किसी के दिये हुए आभूषण हैं। उन्हें बेचकर रोकड़ पैसे मुझे दे दो।" उसने कहा-"आप बताइए। सिर के बल आपका कार्य करूँगा।" तब द्विज ने वे सभी आभूषण उसे दिखाये। उन्हें देखकर सुनार ने पहचान लिया-'अहो! ये तो राजकुमार के हैं। राजपर्याय के योग्य वह राजकुमार किसी वक्र-शिक्षित घोड़े के द्वारा दूर वन में ले जाया गया। वहाँ किसी ने उसे मार दिया। उसे खोजने के लिए अनेक उपाय किये गये, पर पता नहीं लगा। तब राजा ने पटह बजवाया कि जो कोई भी कुमार के जीवन या या मरण के समाचार बतायेगा, उसे महा कृपा प्राप्त होगी। उसे अपना बनाकर बताया जायेगा। फिर भी कुछ भी पता न चला। पर आज मुझे मिल गया। अतः मैं इसे कुछ दिखाता हूँ। राजा का वल्लभ बनूँगा। राजकीय प्रसाद प्राप्त करूँगा। कुछ आभूषण भी पास में रख लूँगा। इस
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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