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________________ धन्य-चरित्र/206 प्रणामपूर्वक विज्ञप्ति की-“हे भट्ट! आपके द्वारा तो निष्कारण उपकार किया गया है। आज से हम भी सैकड़ों प्रत्युपकार करें, तो भी सुप्रत्युपकारक नहीं हो सकते। फिर भी किसी शुभ अवसर पर आप हमारे घर पर कृपा करके पधारना। हम यथाशक्ति अवश्य ही सेवा करेंगे। पर इस मनुष्य को कूप से बाहर निकालना योग्य नहीं है, क्योंकि यह सुनार जाति का है। उपकार करने के योग्य नहीं है।" इस प्रकार अत्यधिक विज्ञप्ति करने बाद वे तीनों अपने-अपने स्थान पर चले गये। उनके जाने के बाद द्विज चिन्ता में पड़ गया और विचारने लगा-"अब इसको निकालूं या नहीं? "इस प्रकार संशय की तुला पर आरूढ़ हो गया। तब अन्दर रहे हुए सुनार ने कहा-" हे ब्राह्मण-श्रेष्ठ! लोगों के उद्वेग के कारणभूत तथा विवेक- रहित व्याघ्र, वानर तथा सर्प का उद्धार तो शीघ्र ही कर दिया, बारी आने पर क्यों विलम्ब करते है? मैं तो मनुष्य हूँ। क्या व्याघ्र, वानर और सर्प से दुष्टतर हूँ? क्या मैं आपके उपकार को भूल सकूँगा? अतः मुझे शीघ्र ही निकालिए। मैं तो आजन्म आपका सेवक बनकर रहूँगा।" भोला ब्राह्मण फिर विचार में पड़ गया-"यह सत्य ही बोलता है। क्या यह मनुष्य तिर्यंच से भी हीन है? अब जो भी होना है, हो जाये। उपकारियों को पंक्ति-भेद करना उचित नहीं है। उनके द्वारा भी सत्य ही कहा गया होगा पर मेरी इसके साथ क्या दुश्मनी है? मैं तो दूर देश का वासी हूँ। यह तो इसी मण्डल का वासी है। मेरा क्या कर सकता है?" इस प्रकार विचार करके उसे तुरन्त बाहर निकाल लिया। तब सुनार ने भी ब्राह्मण को नमस्कार करके कहा-"आप तो मेरे जीवन-दाता बन गये हैं। अतः मुझ पर कृपा करके अमुक नगर में उस पाटक में रहता हूँ, वहाँ जरूर आना। शक्ति के अनुरूप भक्ति करूँगा।" इस प्रकार वचन-विलास करके वह चला गया। ब्राह्मण 68 तीर्थों में भ्रमण करके पुनः लौटकर कुछ काल बीतने के बाद उसी वन में आया। भाग्य से व्याघ्र ने उसे देखा और पहचान लिया। 'अरे! यह तो मुझे जीवन दान देनेवाले महा-उपकारी है। इस प्रकार याद करके बहूमानपूर्वक पाँवों में वन्दन करके पूर्व में मारे गये राजकुमार के पास से अनेक लाखों मूल्यवाले जो गहने प्राप्त हुए थे, वे उसे द्विज को देकर पूछा-" स्वामी! हम तीनों का उद्धार करने के बाद उस सुनार का उद्धार किया या नहीं ? द्विज ने कहा-"उसके द्वारा अति दीनतापूर्वक विज्ञप्ति की गयी, अतः मेरे चित्त में अत्यधिक करुणा पैदा हुई। अतः मैंने उसे बाहर निकाल दिया।" ____ व्याघ्र ने कहा - "अच्छा नहीं किया। पर अब आगे उससे संगति मत करना।" इस प्रकार कहकर तथा नमन करके वह बाघ चला गया। ब्राह्मण भी जन्म-भर के दारिद्रय का निवारण करनेवाले आभरणों को प्राप्त करके उत्साहपूर्वक
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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