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________________ धन्य-चरित्र/208 द्विज से मुझे क्या प्रयोजन? घर में बैठकर तो खान-पान में मुझसे धन ही खर्च करवायेगा।" ___ इस प्रकार विचार करके आभूषण हाथ में लेकर विप्र को बोला-'हे स्वामी! सुवर्ण की परीक्षा तो मैं स्वयं कर सकता हूँ, पर रत्न के विषय में मैं कुछ नहीं जानता हूँ। अतः इन आभूषणों को रत्न-वणिक को दिखाकर, मूल्य बढ़ाकर, बेचकर आपको धन लाकर देता हूँ। आप सुखपूर्वक यहाँ आराम कीजिए।'' इस प्रकार वह सुनार आभूषण लेकर राजा के पास गया ।राजा ने पूछा-'कैसे आना हुआ?" उसने कहा-'कुमार की खोज मेरे द्वारा पूर्ण हो गयी है। वही निवेदन करने के लिए आया हूँ। __यह सुनकर राजा के कान खड़े हो गये और उसने पूछा-'कैसे? कैसे?' तब सुनार ने वे आभूषण दिखाये। राजा ने उन्हें देखते ही पहचान लिया। राजा ने पूछा-"कौन लेकर आया है?" सुनार ने उत्तर दिया-"इन आभूषणों का चोर मेरे घर पर बैठा है। उसने मुझे बेचने के लिए ये आभूषण दिये हैं। मैंने आपको दिखा दिये है।'' राजा ने कहा-'तुमने बहुत अच्छा किया। तुम तो मेरे आत्मीय हो गये हो।' इस प्रकार कहकर सेवकों को बुलाकर आज्ञा दी–'हे सेवकों! दौड़ो-दौड़ो। इस सुनार के घर पर बैठे हुए द्विज को बाँधकर विडम्बनापूर्वक यहाँ लेकर आओ। तब राजपुरुष जल्दी से गये। सुनार के घर पर रहे हुए द्विज को अचानक से बाँधकर विडम्बनापर्वक लेकर राजा के पास आये। राजा ने उसे देखते ही वध करने का आदेश दिया। तब सेवक उसके आधे मस्तक का मुण्डन करके गधे पर आरूढ़ करके मारते हुए नगर में घुमाने लगे। विप्र मन में विचार करने लगा-"मैंने उन तीनों के द्वारा कहा हुआ नहीं माना, यह उसी का दुष्परिणाम है।' इस प्रकार विचारने लगा, तभी वृक्ष पर रहे हुए वानर ने उसे देख लिया। वह सोचने लगा-अहो! हम तीनों के उपकारी इस विप्र की यह दशा कैसे हुई?" फिर लोगों के मुख से घटना सुनकर विचारने लगा-“निश्चय ही सुनार से धोखा खाया हुआ यह मर जायेगा। किसी भी तरह इसे बचाना चाहिए-'इस प्रकार विचार करके सर्प के पास जाकर सारी घटना कह सुनायी। सर्प ने कहा-'चिंता मत करो। सब अच्छा ही होगा।' यह कहकर सर्प ने राजा की वाटिका में जाकर कुल के बीजभूत राजकुमार को डस लिया। देखते ही देखते वह शव के समान निश्चेष्ट होकर भूमि पर गिर गया। राजसेवक चिल्लाते हुए राजा के पास गये और कहा। राजा भी किंकर्त्तव्यमूढ़ हो गया। मंत्रवादियों को बुलाया गया। उन्होंने भी अपने मंत्रबलों के द्वारा अनेक
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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