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________________ | नहीं हुआ । फिर अनुकूल उपसर्ग में हावभाव मधुरवचन, नाट्य | आदि से वह परवश हो गया ध्यान से चलित होते ही उसे बांधकर, वे अपने महल में ले गयी । उसको विडंबित करती हैं। लोगों के मुख से जानकर, उनकी पूजादि से अनेक प्रकार की भक्ति की, पर वे नहीं मानती । इधर उत्तरश्रेणि में सर्वविद्याधरों का राजा चक्रायुध है। उसे समर्थ जानकर उससे प्रार्थना की कि मेरे पुत्र को छुड़वाओ ।" वह भी छुड़वाऊँगा, छुड़वाऊँगा ऐसा कहता है। परंतु कार्य करता नहीं मेरी एक पुत्री है 'वज्रसुंदरी' । वह जैनधर्म पर रूचिवाली है। वह नाट्यकला में भी रूचीवाली है। इसके गुणों को श्रवणकर चक्रायुध ने मेरी पुत्री की याचना की। मैंने तीन गुना अधिक वयवाला और बहु पत्नित्ववाला जानकर पुत्र विरह के दुःख में उसे समाचार भेजे कि मेरे पुत्र को योगिनी के बंधन से छुड़वाने के पूर्व मैं विवाहादि कोई कृत्य करना नहीं चाहता । आप उसको छुड़वाने का प्रयत्न कीजिए ।" कुछ दिनों के बाद मेरी सभा में एक निमित्तज्ञ आया । उसको पूछने पर उसने कहा कि, जो पद्मरथ भूप को बांधकर धर्मी बनायगा, श्रीपति राजा की तीनों पुत्रीयों को शर्त में जीतकर उनसे पाणिग्रहण करेगा, वही तेरे पुत्र को छुड़वाएगा । तेरी पुत्री की शादी भी उससे होगी। ऐसा सुनकर मैं आपको खोजता-खोजता यहाँ आया हूँ। शायद आपको पिता अनुमति न दे। इस कारण भिल्ल का रूप बनाकर मैं आपके यहाँ ले आया । हे राजन् ! मेरे पुत्र को छुड़वाओं। संत पुरुष सदा उपकार ही करते हैं। आपके जैसे महामानव जगत पर उपकार के लिए ही रहते हैं।" जयानंद राजा ने सोचा 'परोपकार का अवसर परम भाग्य से प्राप्त हुआ हैं।' "एक ओर परोपकार का पुण्य, दूसरी ओर सभी पुण्य'' उसने कहा "मैं आपके साथ आ रहा हूँ। वे वैताढ्यपर्वत पर आये । जय राजा को एक व्यक्ति १५७ -
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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