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________________ के साथ समाचार भेज दिये। पवनवेग ने जयानंद से कहा “हे राजन् ! योगिनी को वश करने के लिए 'ज्वालामालिनी' विद्या को साधनी आवश्यक है।" उसे विधि बतायी । तब उसने कहा "लाखों बिल्वादिका होम सावद्य क्रिया है। उसकी कोई आवश्यकता नहीं । मैं धूप दीपादि की पूजाकर साधना करूँगा। फिर शुभ समय में देवी के सामने निरवद्य सामग्री से पूजाकर पूर्वाभिमुख दर्भासन पर बैठकर पंचपरमेष्ठि के द्वारा जाप प्रारंभ किये । योगिनियाँ दूसरे दिन से उपसर्ग करने लगी । सर्पोद्वारा दंश, हस्तियों द्वारा दांतो से, व्याघ्रों के नखों से पीड़ा पहुँचायी, पर ध्यान से चलित न हुआ । धूम, अग्नि आदि, तर्जना, ताड़ना आदि से भी चलायमान न हुआ । फिर अनुकूल उपसर्ग किये । स्त्रियाँ बनकर हाव भाव बताकर आकर्षित करना चाहा । आलिंगन आदि से, नृत्यादि से भी वह चलायमान न हुआ । सातवें दिन उस पर पुष्प वर्षा करती महाज्वालादेवी प्रकट हुई । उसे देखकर योगिनियाँ भाग गयी । देवी ने कहा मैं तेरे शील, ध्यान से प्रसन्न हूँ। पर पूजा के बिना वरदान नहीं दे सकूँगी । उसने कहा "कौन सी विधि?।" देवी ने कहा एक "प्राणिका मांस ।" उसने कहा "निरपराधी प्राणी को मैं नहीं मारता । आप कहे तो मेरा मांस दे दूं । तब उसने कहा "दो" । कुमार ने तलवार उठायी । जंघा छेदने लगा । देवी ने तलवार छीन ली। कहा "मैं तेरे सत्त्व और दयाभाव से संतुष्ट हूँ। यह पाठ सिद्ध विद्या ले !" योगिनियों को आकर्षित करने के लिए आकर्षिणी विद्या, सूर्य हास असि, चक्र, शक्ति और त्रिधा उपद्रव नाशक अंगद, (एक प्रकार की शक्ति) आदि दिये और कहा "हे वत्स! लाखो बिल्व फलों से पूजा, प्राणि मांस से पूजा, होम हवन से भी मैं बड़ी कठिनता से सिद्ध होती हूँ । परंतु तेरे सत्त्व, शील और पुण्य से अल्प प्रयास से सिद्ध हो गयी हूँ । फिर उसने
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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