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________________ में चण्डसिंह पल्लीपति के दो पुत्र सिंह और व्याघ्र हैं। पिता की मृत्यु के पश्चात् दोनों भाई राज्य का विभाजन करके रहने लगे। सिंह ने छोटे भाई का राज्य और पत्नी बलात्कार से ले ली । मैं व्याघ्र दुःख से घूमता हुआ यहाँ आया हूँ। मेरा भाई सिंह यहाँ आकर वन में क्रीड़ा कर रहा है। हे राजन्! दुर्बलों की शक्ति राजा है, ऐसा सोचकर मैं तेरे पास आया हूँ। सेना का कोलाहल सुनकर वह भाग जायगा । अतः आप अकेले आकर उसे हराकर, मेरी पत्नी को छुड़वाकर, मेरा राज्य मुझे दिला दो । ऐसा सुनकर किसी को कहे बिना उस भिल्ल के साथ कुमार तलवार लेकर चला गया ।" भिल्ल ने कहा "मैं आगे चलने मैं डरता हूँ आप आगे चलिये, वह यहाँ है ।" कुमार ने सिंह को खोज़ा पर न मिला । पीछे देखा तो भी वह भी न मिला । तब उसने सोचा 'इंद्र जाल होगी।' तभी आकाश से एक विद्याधर उतरा। राजा को प्रणामकर बोला "राजेन्द्र! विकल्प न करें । भिल्लरूपादि माया मैंने की है। कारण सुनो "वैताढ्य की दक्षिणश्रेणि के पचास नगरों में रथनुपुर चक्रवाल पुर है। वहाँ दक्षिण श्रेणि के विद्याधरों को मान्य पवनवेग नामक मैं राजा हूँ । मेरा वज्रवेग नामक पुत्र है। वज्रवेग ने अनेक विद्याएँ सिद्ध की हैं। वह हेमगिरिशृंग पर हेमपुर में सपरिवार क्रीडा करता है। वहाँ योगिनियों के रहने का स्थान जालंधरा नामक पत्तन है? उनकी स्वामिनी कामाक्षा है। वह उसके आराधकों पर प्रसन्न हो जाय तो वे ६४ उसकी सेवा में रहती है। उनमें अनेक शक्तियाँ है। क्रोधित हो जायँ, तो कष्ट भी दें । उन योगिनियों का हेमगिरिपर्वत क्रीड़ा स्थान है। वज्रवेग उनको वश करने के लिए ज्वालामालिनी विद्या साधने हेतु महाज्वालादेवी की होम हवन से पूजाकर मंत्र जाप करने लगा । योगिनियों ने यह जानकर सातवें दिन आकर प्रतिकूल उपसर्ग किये। वह क्षोभित
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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