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________________ परीक्षा का दिन आया । सभी छात्र सज धजकर पाठक से साथ परीक्षा खंड में जाने लगे। वामन भी तैयार होकर आया। गुरु को क्रोड मूल्य का हार भेट में देकर बोला "गुरुजी जब सब छात्रों की परीक्षा हो जाय, तब मुझे नाट्यकला के लिए आदेश दें।" गुरु ने उसकी दान कला से खुश होकर "हाँ" कही। सब परीक्षा खंड में आये। प्रथम राजकुमारों ने नाट्यदर्शाया फिर राजकुमारी ने नाट्यकला बतायी। तब वामन ने उसकी नाट्यकला में भूलें बतायी। नाट्यसुंदरी ने कहा "ये भाव भरत शास्त्र में हैं।" वामन ने कहा "ऐसा मत बोल भरतशास्त्र मुझे कंठस्थ है। भरत मुनि ने ऐसे भाव कहीं नहीं कहे।" वामन उस अधिकार के श्लोक बोलने लगा । नाट्यसुंदरी बोली "मुझे विस्मृति हुई होगी।'' वामन ने कहा “ऐसे ज्ञानवाली तुझमें विस्मृति संभव नहीं है, परंतु सब की परीक्षा के लिए तुमने ऐसा किया होगा, ऐसा मैं मानता हूँ। परंतु इस सभा में ऐसे सूक्ष्मज्ञाता कोई नहीं है? इस कथन से कन्या अपनी स्खलना की व्याख्या से प्रसन्न हुई। कन्या के नृत्य से सभा प्रसन्न थी। राजकुमारों की कला से नाट्यसुंदरी की कला अच्छी रही। राजा ने उपाध्याय से पूछा अब कोई छात्र शेष है। तब गुरु ने वामन को बताया। राजा ने सोचा : यह कुरूप क्या कला बतायेगा?' फिर भी राजा ने कहा "रे वामन! नाट्यकला जानता हो तो बता। यह सभा तुम्हारी कला देखने हेतु उत्सुक है। वह उठा। छात्र हास्य करने लगे। दर्शकों में भी हास्य फैला। पर वामन तो निर्भय होकर उठा, और पंच परमेष्ठि का स्मरणकर नृत्य करने लगा । वादक बाजे बजाने लगे। उसका नृत्य देखकर वादक भी उत्साहित होकर बाजे बजाने लगे। ईष्यालु व्यक्ति भी उसके हाव भाव में कहीं भी दोष निकाल न सके। पंडितजी तो आश्चर्य चकित हो गये । फिर उसने भाले के अग्र भाग पर पुष्प,
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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