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________________ पुष्प पर सुई, उस पर पुष्प रखकर नाचा। दर्शक चकित हो गये। नाट्यसुंदरी ने उसके गले में वरमाला पहना दी । उस समय जयध्वनी करने वाले बाजे बजे, गौत्रदेवी ने आकाश से पुष्प वृष्टि की राजा ने भाग्य को धिक्कारा । 'एक को वामन वर मिला। अब दो को तो राजकुमार मिले, तो ठीक।' ऐसा सोचा । फिर गीत एवं वीणा की भी परीक्षा हुई । उन सब में राजकुमार असफल हुए। राजकुमारी जीती। वही वामन दोनों परीक्षाओं में राजकुमारीयों से अधिक रहा । क्रमशः दोनों ने वरमाला पहनायी। उस समय आकाश से पुष्पवृष्टि हुई। चारण लोगों ने स्तुति की। तब वामन ने उनको अपरिमित दान दिया । दर्शक और परीक्षक उसकी कला कौविदता, और दान से प्रभावित होकर सोचने लगे। ‘ऐसी कलाओं के ज्ञाता को विधाता ने वामन बनाया । धिक्कार है विधाता को।' राजा ने सोचा धिक्कार है इन कन्याओं के भाग्य को। दैव को कौन उल्लंघन कर सकता है?' इस प्रकार चिंता से व्याकुल राजा ने कलागुरु से पूछा "यह वामन कौन है? किस देशका है? कुल कौन सा है?'' गुरु ने कहा "राजन्! इसको पूछने पर इसने बताया कि मैं नेपाल देश के विजयपुर नगर का क्षत्रियकुमार हूँ। कला सीखने आया हूँ। इससे अधिक इसका स्वरूप बुद्धिशाली भी नहीं जानता । दिव्यालंकारी और दिव्यदानी यह कला प्रयत्नपूर्वक पढ़ाने पर भी अपने आपको मूर्ख के समान प्रदर्शित करता रहा। परंतु आज तो इसने मुझसे भी अधिक कला प्रदर्शित की है। यह अलक्ष्यस्वरूपवान् महापुरुष दिखाई देता है।' गुरु की वाणी से राजा की शंका शांत नहीं हुई । राजकुमार अपनी बेइज्जती से चिढ़कर, वामन के साथ युद्ध कर तीनों कन्याओं को स्वाधीन करने की सोचकर युद्ध का आह्वाहन किया । वामन ने युद्ध में उसके साथ पढ़नेवाले पांचों राजकुमारों
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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