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________________ में) दिया । उसे लेकर मदन चला। मार्ग में मध्याह्न के समय में सरोवर के किनारे स्नानकर देव गुरु का स्मरणकर अतिथि की राह देखने लगा। थोड़ी देर में वहाँ कोई जटाधारी भिक्षा के लिए आया उसे बुलाकर करम्ब उसे खाने को दिया। वह वहाँ खाने बैठा । मदन ने भी खाने के लिए कोलियाँ उठाया । इतने में किसीने छींक की। अपशुकन मानकर वह रूका। थोड़ी देर में वह जटाधारी बकरा बन गया और संकाशपुर चला । यह कहाँ जाता है देखने के लिए मदन भी पीछे चला । वह बकरा विद्युल्लता के घर गया । मदन पास में कहीं छिपकर पत्नी की चेष्टा देखने लगा । उस बकरे को विद्युल्लता घर में. ले गयी । द्वार बंधकर दंड से उसे पीटना शुरू किया। वह बोली “रे, रे, निरपराधी ऐसी मुझे छोड़कर सापराधी उन दोनों को मिलने दौड़ रहा था । क्या मेरे पास मूशल नहीं है ? मैं पति के प्राण लेना नहीं चाहती।" इस प्रकार बोल-बोलकर बकरे को मारती थी उसके रोने से लोग इकट्ठे हुए। लोगों के उपालंभ से उसने मंत्रित जल छिड़का । वह जटाधारी पुरुष हो गया। लोगों ने पूछा आप कैसे ? उसने करंब खाने की बात कही । लोक विस्मित होकर घर को गये। जटाधारी भी गया। उस स्त्री ने सोचा ' धिक्कार है मुझे, बिचारा यह निरपराधी भिक्षुक मारा गया। भर्तार कहाँ गया ? पुनः मिलेगा या नहीं? मैंने सोचा था थोड़ी सजाकर, उसे समझा बुझाकर अपना बना लूंगी। पर मेरे मनोरथ व्यर्थ गये। लोगों में निंदा हुई, और पति का वियोग हुआ । इधर मदन ने इस प्रकरण को देखकर सोचा यह अपने चरित्र से मेरी पूर्व प्रियाओं से भी आगे बढ़ गयी। इन स्त्रियों के चरित्र को योगी भी नहीं जान सकते । धिक्कार है मुझ जैसे रागान्धों को, जो स्त्री में रंजित होते हैं। मैं तो कष्ट से मुक्त हो गया। चंडा - प्रचंडा और विद्युल्लता से मुक्त हो गया। अब स्वहित करूँगा ।' वहाँ से गुप्त रूप से १२३ 44
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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