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________________ को पाप का पश्चाताप दुर्लभ हैं । इधर राजा के द्वारा कमला रानी को कहीं बाहर भेज दिया गया था? वह जब घर आयी और उसे अपनी पुत्री की कथा मालूम हुई तो वह मूर्छित हो गयी । दासी द्वारा उपाय करने पर वह | होश में आयी । फिर दो दासियों को लेकर गुप्तरूप से जहाँ पुत्री थी वहाँ आयी । दूर से पुत्री की अवस्था देखकर क्रोधित हुई वह राजा के पास आयी । राजा से कहने लगी। "हे दुर्मति! सर्वविरुद्ध अकृत्य करनेवाले तुझे धिक्कार है। अपनी संतान को इस प्रकार की सजा चंडाल भी नहीं | देगा । मेरी पुत्री को विडंबित क्यों की?" उसको अंधी क्यों बनायी? मैं तो तेरे सामने इस छुरी को पेट में मारकर मर जाऊँगी ।" उसने छुरी निकाली तभी राजा ने उसके हाथ में से शीघ्रता से छुरी छीन ली। राजा | पश्चातापपूर्वक बोला "हे सुन्दरी ! सुन, मैंने क्रोध में आकर यह कृत्य कर लिया है। अब मंत्री प्रजा, और तेरे द्वारा किये हुए धिक्कारी वचनरूपी ताड़ना से अधिक पश्चातापवाला हुआ हूँ अब प्रातः उसे खोजकर आदरपूर्वक लाकर, दूसरी औषधि से आँखें ठीककर किसी राज पुत्र से उसका विवाह उत्तम रीति से करूँगा । क्योंकि क्रोध से किये हुए कार्य की कोई गिनती नहीं होती।" इस प्रकार राजा द्वारा आश्वस्त रानी ने कष्टपूर्वक रात बितायी । इधर विजया अनेक प्रकार से विलाप करती हुई अपने | किए हुए कर्मों की निन्दा करने लगी। क्या मैंने जिनेश्वर की विराधना की, जितेन्द्रिय गुरु की गर्दा की, संघ की अवहेलना की, जिससे अतिदुःखभाजन हुई? हे पिता! जन्म से मुझे क्यों पाला पोसा? हे माता! मैं शैशव काल में ही मर क्यों न गयी ? पूर्वकृत कुकर्मों के कारण सुख एवं धर्म से वर्जित इस दशा को मैं प्राप्त हुई। महा बलवान् ऐसे राजा महाराजाओं को दुःखी करके भी तू तृप्त न हुआ । जिससे मुझ जैसी अबला की हे देव! तूने इस प्रकार विडंबना की। इस प्रकार प्रिया को विलाप करती देखकर
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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