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________________ कुवलयमाला-कथा [31] वगैरह के कामों में फँसा रहे फिर ऐसे विवेकहीन वचन न बोले ।" इतना कहकर मन्त्री ने देवपूजा की और राजभवन में जाकर वही मञ्जरी राजा के हाथ में रक्खी। राजा बोला - " क्या बाहर के उद्यान में वसन्त ऋतु आगई है? " मन्त्री बोले-‘“हे देव! वसन्त की शोभा देखने उद्यान में पधारिये " । राजा सुनते ही तुरन्त चार दाँतों वाले विशाल हाथी पर इन्द्र की तरह सवार होकर चतुरङ्ग सेना के साथ उद्यान में आया । वहाँ पहुँचने पर मन्त्री ने कहा- "देव ! देखिये अत्यन्त आनन्द के समूह से निकलने वाले भौंरों के स्वर से ये स्थलकमल आपका स्वागत कर रहे हैं। फलों से लदे हुए ये वृक्ष, नम्र दिखाई पड़ते हैं । सो ठीक ही है, क्योंकि आप पृथ्वीपति हैं और पृथिवीपति के आने पर भला कौन नमस्कार न करेगा ? एकान्त मधुर स्वर वाले भौरों के गान और पत्तों द्वारा नाच करने वाले ये वृक्ष, महाराज! भौरों के गुनगुन शब्दों से आपके गुणों की स्तुति कर रहे हैं। फूलों से आपके चरणों की पूजा कर रहे हैं" इस प्रकार कहते हुए मन्त्री ने उद्यान में चारों ओर दृष्टि डालकर ।" सोचा- 'इस उद्यान में तो धर्मनन्दन सूरि कहीं दिखाई नहीं पड़ते और मैं उन्हीं की बात मन में विचारकर राजा को विना प्रयोजन ही उद्यान में लाया हूँ। पर शायद इस जगह वनस्पति तथा कीड़े-मकोड़े वगैरह अधिक हैं, इससे कोई दूसरा निर्जीव स्थान देखकर उसी जगह ठहर रहे होंगे। बहुत करके उस सिन्दूर वृक्ष के नीचे फर्श वाली पक्की जमीन है, वहीं शिष्यों सहित सूरि महाराज होने चाहिए ।' ऐसा सोचकर उसने राजा से कहा - "हे देव ! आपने कुमार अवस्था में उस सिन्दूर कुट्टिम के पास जो अशोक वृक्ष लगवाया था, मालूम नहीं उस पर फूल आये हैं या नहीं ।" यह सुनकर "तुमने ठीक याद दिलाई" कहता हुआ राजा मन्त्री का हाथ अपने हाथ में लेकर वहाँ गया, तो वहाँ मुनिराज दिखाई दिए। उनमें कितने ही मुनि धर्मध्यान में चित्त लगाए हुए थे । कुछ प्रतिमा के पालन करने की इच्छा युक्त मन वाले थे। कितनेक का चित्त शुद्ध सिद्धान्त के पठन करने में तत्पर था और कुछ नाना प्रकार के आसन लगाकर ध्यान में बैठे थे। उन सब के बीच में चार ज्ञानधारी सूरिराज को बैठे देखा । वे ऐसे शोभित हो रहे थे, जैसे सब ताराओं में चन्द्रमा, सब समुद्रों में क्षीरसमुद्र और सब देवों में इन्द्र । उन्हें देखकर राजा कुछ प्रसन्न होकर बोला- “हे मन्त्री ! लोग कौन हैं? और उन सब के बीच में बैठा हुआ राजा के समान वह कौन है? मन्त्री ने कहा द्वितीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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