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________________ 370 368 राम के समाचार जान इक्कीस दिनों बाद सीता ने भोजन किया। हनुमान को चूडामणि दे शीघ्र बिदा होने हेतु कहा । हनुमान बोले- हे माता, मैं लोकेश्वर का सैनिक हूँ, रावण मेरे समक्ष क्या है। मैं इसे हरा आपको कंधे पर उठा आज ही राम के समीप ले जा सकता हूँ। 7 सीता ने पुनः जाने का आदेश दिया तो हनुमान पुनः बोले- मैं जाते-जाते राक्षसों को कुछ पराक्रम दिखा जाता हूँ। 372 अच्छा, कह सीता ने चूड़ामणि दी तब हनुमान देवरमण उद्यान की ओर चल पड़े। 374 रावण (ओ) उपवन का नाश एवं रावण से भेंट : देवरमण उद्यान को गज की तरह तहस-नहस करते हुए हनुमान ने अनेक वृक्षों को उखाड़ दिया । द्वारपालों को जब हनुमान ने मार दिया तब रावण ने अक्षयकुमार को भेजा जिसे हनुमान ने प्रारंभ में ही परमगति दे दी। 373 तब इन्द्रजीत ने आकर हनुमान को नागपाश में बाँधा व रावण की सभा में उपस्थित किया । बोला, अरे मूर्ख, वह वनवासी भील तुझे क्या देगा। तू मेरा सेवक था व आज किसी का दूत है, अत: तुझे माफ कर रहा हूँ । हनुमान सक्रोध बोले- “कदा अहं तव सेवकः- कदा ममाडभूस्तवं स्वामी", तुझे ऐसा कहते शर्म नहीं आती? तू परस्त्रीहर्ता है अतः तेरे साथ बात करना महापाप है। 375 रावण पुनः बोला- अब तुझे गधे पर बैठा लंका में घुमाउँगा । 376 इतना सुनते ही हनुमान उछले, नागपाश टूट गया। उन्होंने रावण को लात मार उसके मुकुट गिरा दिए । 377 अपने भारी भरकम पैरों से लंका को तहस-नहस कर आकाश मार्ग से उत्तर दिशा को उड़ चले। 378 379 (औ) राम से भेंट : राम के पास आकर हनुमान ने उन्हें प्रणाम कर सीता की चूडामणि दी। राम ने साक्षात् सीता- मिलन की तरह उसे हृदय पर धारण किया। 'तत्पश्चात् हनुमान ने लंका प्रवेश से पुनः यहाँ आने तक की संपूर्ण कथा राम व वानर सभा को सुनाई। सभी सीता की कुशलता से प्रसन्न हुए । (१०) राम-रावण युद्ध और रावण वध : 380 (क) राम का लंका की ओर प्रस्थान : राम ने सुग्रीव आदि वीरों के साथ, सलक्ष्मण, आकाश मार्ग से लंका को प्रस्थान किया। उस समय भामंडल, नील, नल, महेन्द्र, हनुमान, विराध, सुखेन, जाम्बवान, अंगदादि अनेक विद्याधर राजा राम के साथ रवाना हुए। आकाश विमानों, रथों, अश्वों, हाथियों आदि से भर गया। राम की सेना का प्रथम युद्ध बेलंधर पर्वत पर बेलंधर नगर के राजा समुद्र व सेतु से हुआ। समुद्र व सेतु पकड़े गए पर राम ने उन्हे क्षमा कर पुनः राज्य दे दिया 381 तब समुद्र राजा ने अपनी तीन कन्याएँ लक्ष्मण को सौंपी। 382 आगे सुवेल पर्वत के राजा सुवेल व हंसद्वीप के राजा हंसरथ को राम की सेना ने जीत लिया। 383 राजा सुवेल की प्रार्थना पर राम कुछ समय यहीं रहे । 94
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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