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________________ एक दिन दक्षिण दिशा में ससैन्य विभीषण को आते देख राम ने सुग्रीव से मंत्रणा कर उसे आने की आज्ञा दी। 354 तब विशाल नामक खेचर ने कहा- हे प्रभु! "महात्मा धार्मिकश्चैप रक्ष:स्वेंको विभीषणः" 135 यह रावण द्वारा निकाला गया विभीषण आपकी शरण आया है। विभीषण ने भी राम को मस्तक नवाया व बोला- हे राम, मैं रावण को छोड़ आपकी शरण में आया हूँ, मुझे आज्ञा दीजिए। 38 राम ने उसे शरण दी व लंका का राज्य भी उसे समर्पित कर दिया। 387 अव राम ने वहाँ से आगे प्रस्थान किया। (ख) रावण को सद्धर्म का उपदेश : राम की सेना के आने के समाचार के साथ ही रावण ने अपनी सेना को युद्धार्थ तैयार कर रणभेरी बजा दी। 388 विभीषण ने सोचा एक बार और रावण को समझाने का प्रयत्न करूँ। वह रावण के पास जाकर कहने लगा- "परस्त्री-हरण से तुम्हार दोनों लोक बिगड़ गए हैं। कुल लज्जित हो गया है। राम सीता को लेने आए हैं अतः उन्हे सीता को सौंपकर उनका आतिथ्य स्वीकार करो। हे रावण, ये स्वयं राम हैं परंतु उनका दूत हनुमान भी क्या कम है, जिसे तुम जानते हो। तुम इस लक्ष्मी को नाश मत करवाओ। 389" इन्द्रजीत ने कहा- तुम राम के पक्ष की बात कर रहे हो। विभीषण बोला यह इन्द्रजीत तुम्हारा पुत्र रुप में शत्रु है जो कुल का नाश करवाएगा। 390 यह सुनते ही रावण तलवार से विभीषण को मारने आगे बढ़ा। विभीषण भी एक स्तंभ लेकर तैयार हुआ पर कुंभकर्णादि ने उन्हें छुड़ा दिया। रावण बोला- अरे, मेरे नगर से निकल जा (निर्याहि मत्पुर्या) और तभी विभीषण ने वहाँ से प्रस्थान कर दिया। (ग) राम एवं रावण की सेना : राम की वानर सेना संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों दृष्टि से पूर्ण थी। राम की उस सेना ने युद्ध भूमि में खड़ी होने पर बीस योजन भूमि घेरी। युद्ध भूमि में खड़ी राम की सेना समुद्र की ध्वनिसम भयंकर कोलाहल कर रही थी। रावण ने भारी मात्रा में राम के सैन्य को देखकर अपने वीरों को आयुधादि से सज्जित, बख्तर पहनाकर तैयार किया। 397 रावण की सेना के वीर हाथियों, ऊँटों, सिंहों, खरों, रथों, मेषों, पाड़ों, घोड़ों एवं विमानों पर सवार होकर युद्धार्थ तैयार हो गए। सेना को तैयार देख रावण भी अस्त्र-शस्त्र से भरे रथ पर आ बैठा। भानुकर्ण रावण का अंगरक्षक बना। अब इन्द्रजीत, मेघवाहन, शुक्र, सकण, मारीच, मय आदि करोड़ों वीर रावण के इर्दगिर्द जा डटे। अब असंख्य सहस्र अक्षोहिणी सेना के साथ रावण ने युद्ध भूमि में प्रवेश किया। 393 . रावण के सैनिकों में किसी के पास शेर वाली ध्वजा, किसी के मयूर वाली ध्वजा, कोई अष्टपाद वाले मृगवाली ध्वजा, कोई चमूर मृग वाली ध्वजा, 95
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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