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________________ के लिए इस शिला को जड़ से उखाड़ो। यह कह वे लक्ष्मण को आकाश मार्ग से कोटिशिला के पास ले गए। तब वहाँ लक्ष्मण ने उच्चिक्षेप शिलां दोष्णा लक्ष्मणस्तां लतामिव। साधु साध्वित्युच्ममानस्त्रिदशैः पुष्पवर्षिभिः। 336 लक्ष्मण के कोटिशिला उठाते ही देवताओं ने हर्षित हो पुष्पवर्षा की। वहाँ से सभी राम के पास आए एवं कहने लगे- "लक्ष्मण ही रावण को मारेंगे। 337 विचार हुआ कि प्रथम दूत भेजकर शत्रु को सूचित कर दिया जाए। महा पराक्रमी व समर्थ दूत कौन है, यह प्रश्न अब सामने था।" __ (उ) राम हनुमान भेंट एवं हनुमान का लंका की ओर प्रस्थान : महापराक्रमी दूतकार्य के लिए सुग्रीव ने तुरंत श्रीमूर्ति को भेजकर हनुमान को बुलाया। हनुमान ने राम को प्रणाम किया। 338 तब सुग्रीव ने राम को हनुमान का परिचय इस प्रकार करवाया-" ये विनयी पवनंजय पुत्र हनुमान हमारे लिए दुःख में बंधु सम हैं। सभी विद्याधरों में ये सर्वोच्च हैं अतः इन्हें सीता का समाचार लाने की आज्ञा दीजिए। हनुमान बोले! हे स्वामी ! यहाँ गव, गवाक्ष, वयः, शरभ, गंधमादन, नील, मैन्द, जाम्बवान, अंगद, नल एवं अनेक श्रेष्ठ कपि हैं परंतु सुग्रीव स्नेहवश ऐसा कह रहे हैं। मैं भी आपके कार्य की सिद्धि हेतु इनमें से एक हूँ। * वे आगे कहते है- क्या राक्षसद्वीप सहित लंका को उठाकर यहाँ ले आऊँ। या बंधुओं समेत रावण को बाँधकर यहाँ ले आऊँ। अथवा सकुटुम्ब रावण को मारकर उपद्रव रहित, सीता को शीघ्र ले आऊँ। 341 हनुमान की ऐसी बातें सुनकर राम बोले - सर्व संभवति त्वयि। तद्गच्छ पुर्या लङ्कायां सीतां तत्र गवेषयेः ।342 अर्थात् जाओ और लंका नगरी में सीता की खोज करो। मेरी मुद्रिका सीता को निशानी रुप में देकर सीता की चूड़ामणि यहाँ ले आना एवं सीता को कहना कि- हे देवी! राम सदा ही तुम्हारा ही ध्यान करते हैं। 43 राम ने कहा- सीता से कहना कि वह जीवन का त्याग न करे। लक्ष्मण शीघ्र ही रावण को मारकर तुम्हें ले जाएगा। 4 हनुमान बोले- हे स्वामी ! मैं आपके आदेश का पालन करके जब तक यहाँ आऊँ, तब तक आप यहीं रहिए। इतना कह राम को व अन्य सभी को प्रणाम कर भयंकर वेग से हनुमान लंका नगरी की तरफ विमान से उड़े। "इत्युक्त्वा राघवं नत्वा मारुतिः सपरिच्छदः । लंकापुरी प्रत्यचालीविमानेनाऽतिरंहसा ॥'' 345 (ऊ) हनुमान का लंका तक गमन : आकाश में उड़ते हुए जब हनुमान के नाना महेन्द्र का नगर आया तो क्रोधित हो भयंकर ध्वनियुक्त रणवाद्य बजाया। 546 उधर महेन्द्र ससैन्य आ धमका जिससे भयंकर युद्ध हुआ। शत्रु सेना को भंग करते हुए हनुमान ने विचार किया- "धिग्मया युद्धं 92
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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