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________________ राम को देनी चाहीं परंतु राम ने इस प्रस्ताव को नकार दिया। तदन्तर सुग्रीव ने नगर में प्रवेश किया एवं राम ने एक उद्यान में निवास किया। 232 (९) सीता की खोज करने में वानरों का योगदान : (अ) सुग्रीव को लक्ष्मण का संदेश : कुछ काल व्यतीत करने के पश्चात् एक दिन लक्ष्मण धनुष, तलवार आदि शस्त्रों से सज्जित हो सुग्रीव के पास पहुँचे। लक्ष्मण के आने का समाचार सुनते ही सुग्रीव अंतपुर से निकल उपस्थित हुआ। 324 क्रोधित लक्ष्मण बोले- अरे बंदर ! अधिक सुखी होकर अंत:पुर में मौज कर रहा है। राम किस प्रकार वृक्षों तले जीवन बिता रहे हैं, यह तू इतनी जल्दी ही भूल गया। 325 खड़ा हो, और शीघ्र सीता का समाचार लाने के लिये प्रयाण कर। सुग्रीव ने अपराध के लिये लक्ष्मण से क्षमा चायना की एवं मन में सीता की खोज हेतु योजना बनाने लगा। 326 (आ) सीता की खोज के लिए सुग्रीव द्वारा विद्याधरों को भेजना : सुग्रीव तत्काल राम के पास आया एवं प्रणाम कर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि हे सैनिको! तुम अपने पराक्रम से शीघ्र सीता की खोज करो। 327 सुग्रीव के आदेशानुसार सभी सैनिक द्वीपों, पर्वतों, समुद्र एवं गुफाओं आदि में सीता की खोज करने लगे। 328 भामंडल एवं विराध भी राम के पास आकर दुःख में उनकी सेवा करने लगे। (इ) सुग्रीव का प्रस्थान एवं रत्नजटी से भेंट : अब स्वयं सुग्रीव सीता की खोज करता हुआ कंबुद्वीप में पहुँचा। वहाँ रत्नजटी नामक विद्याधर सुग्रीव को देखकर सोचने लगा कि क्या यह रावण के आदेश से मुझे मारने हेतु आया है। रावण ने पूर्व में मेरी विद्या को नष्ट किया था। अब मेरे प्राण भी हर लेगा। 329 सुग्रीव जब रत्नजटी के पास पहुँचा तो उसे ज्ञात हुआ कि सीता को ले जाते रावण से आकाश में रत्नजटी ने युद्ध किया था जिससे रावण ने उसकी विद्या को नष्ट कर दिया था। 32 सुग्रीव रत्नजटी को राम के पास ले गया जहाँ उसने राम को सीता विषयक समाचार दिए। रत्नजटी कहने लगा, लंका का राजा रावण सीता को ले जा रहा था, तब मैंने क्रोधित हो युद्ध का प्रयास किया। राम रत्नजटी के प्रयास से प्रसन्न हुए व उसे बाँहों में भर लिया। अब राम ने सुग्रीव से पूछा- "इतः कियति दूरे सा लंङ्कापुरस्तस्य राक्षसः।" 332 वानर बोले, प्रभु, हम तो रावण के सामने तिनके के समान हैं। लक्ष्मण क्रोधित हो बोले- "क्षत्राचारेण तस्याऽहं छेत्स्यामि छलिनः शिरः' 333 (ई) जाम्बवान का परामर्श एवं लक्ष्मण का कोटिशिला को उठाना : लक्ष्मण के इस प्रकार कहने पर जाम्बवान बोले- हे लक्ष्मण, तुम सब कर सकते हो, परंतु जो कोटिशिला को मूल से उखाड़ेगा, वही रावण को मार सकेगा। 24 अनंतवीर्य साधु ने यह तथ्य कहा है अतः सत्यता प्राप्त करने 91
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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