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________________ तीव्र प्रहार प्रारंभ कर दिए। लक्ष्मण ने भी हजारों वाण छोडकर क्षणमात्र में "क्षुरप्र' बाण से खर का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। 27 अव दृषण को भी लक्ष्मण ने मार गिराया। युद्ध में अनेक राक्षसों को मारकर लक्ष्मण वहाँ चले जहाँ राम सीता-विहीन अकेले हो चुके थे। 280 (छ) राम व लक्ष्मण को सीता-अपहरण का समाचार प्राप्त होना : धनर्धारी राम जब यद्धस्थल में लक्ष्मण के पास पहँचे तो ज्ञात हआ कि लक्ष्मण ने सिंहनाद नहीं किया था। 28 लक्ष्मण ने कहा- भैया ! हमारे साथ धोखा हुआ है। यह सीता को अपहत करने का उपाय ही होगा। 282 अतः हे राम। "तद्गच्छ शीघ्रमेवार्य त्रातुमार्या।'' 28 राम जब यथास्थान पहुँचे तो सीता वहाँ नहीं थी। राम मूर्छित हो गए। 24 लक्ष्मण ने भी वहाँ पहुँच कर जब राम को सीता-वियोग में मूर्छित देखा तो वे स्वयं अति दुःखी हो गए। 285 (ज) सीता का अपहरण एवं जटायु :- रावण जब सीता को बलात् पुष्पक विमान में चढ़ा रहा था तभी जटायु ने वहाँ आकर रावण को ललकारा कि- हे रावण ! राक्षसाधम, तू दूर हट, मैं आ गया हूँ।286 उसने रावण से घोर युद्ध करते हुए अपनी चोंच एवं नाखूनों से उस की छाती को छेद डाला। 287 क्रोधी रावण ने यह देख तलवार से जटायु के पंख काट दिए जिससे वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। 285 इसी तरह सूर्यजटी पुत्र रत्नजटी विद्याधर भी रावण से लड़ा परंतु वह भी हारकर कंबूद्वीप में जा गिरा। 289 लौटने पर राम ने इसी जटायु को अंतिम साँसें गिनते देखा और सारी बात समझ गए। उन्होंने उसे नवकार मंत्र देकर माहेन्द्र देवलोक में देव के रुप में भेज दिया। 290 (झ) रावण द्वारा सीता को लंका में ले जाना : रावण जटायु से मुक्ति पाकर आकाश मार्ग से उड़ा जा रहा था। हे नाथ! वत्स लक्ष्मण ! हे भाई मामंडल! 91 इस प्रकार रुदन करती सीता से रावण प्रार्थना करने लगा किहे सीता, तुम्हें मैं पटरानी बनाऊँगा, तू शोक मत कर। 292 अब तू मुझे पति मान। 293 रावण यह कहता हुआ जब सीता के चरणों में गिरा तो सीता ने अपने चरण समेट लिए। सीता ने प्रतिज्ञा की, जब तक राम-लक्ष्मण के कुशलता के समाचार प्राप्त नहीं होगे तब तक भोजन ग्रहण नहीं करूँगी। ___ लंका में प्रवेश कर रावण ने सीता को पूर्व दिशा में आए देव रमण नामक उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे बिठाई एवं त्रिजटादि- राक्षसियो को रक्षक नियुक्त कर वह अपने महलों में चला गया। () मंदोदरी एवं विभीषण का रावण को समझाना : इधर चंद्रनखा पति-पुत्रों एवं चौदह हजार कुलपतियों के मरते ही छाती कूटती हुई लंका को गई व भाई रावण के घर में प्रवेश किया। चंद्रणखा ने अपना सारा दुःख सुनाकर कहा कि, पाताल लंका भी मेरे हाथ से चली गई। रावण ने 88
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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