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________________ चंद्रणखा को विश्वास दिलाया कि, त्वद्मर्तृपुत्रहन्तारं हनिष्याम्यचिरादपि'' रावण को उदास जानकर मंदोदरी ने जब कारण पूछा तो वह बोला- हे भामिनी ! तू सीता को समझा कि वह मेरे साथ क्रीड़ा करे । कुलीन मंदोदरी भी रावण की बातों में आ गई एवं देवरमण में जाकर सीता को इस प्रकार समझाने लगीहै सीता, मैं तुम्हारी दासी रहूँगी, तू रावण को भज। 294 रावण जैसा महाबली कहाँ और राम जैसा साधारण पति कहाँ। 295 पर सीता राम के ध्यान में तल्लीन रही। प्रात:काल होने पर जब मंदोदरी को संपूर्ण वृत्तांत ज्ञात हुआ तब वह रावण से बोली- हे स्वामी। आपने यह कुलकलंकित कार्य किया है। शीघ्र ही सीता को सौंप दो। 27 रावण ने इस बात का प्रतिकार किया तब विभीषण बोला- "राम की पत्नी सीता ही हमारे कुल के नाश का कारण होगी" ज्ञानियों का यह वचन सत्य ही होगा। 298 पुनः विभीषण ने प्रार्थना की कि "मुञ्च सीतां नः कुलघातिनीम्"। रावण नहीं माना। वह सीता को पुष्पक विमान में बिठाकर उद्यान पर्वत, एवं क्रिडास्थलों में घूमने लगा। 299 (८) राम-लक्ष्मण द्वारा सीता की खोज एवं वानरों से मित्रता : (क) राम द्वारा सीता की खोज : राम ने शीघ्र सीता की खोज प्रारंभ कर दी। वे लक्ष्मण से बोले-मैं सीता को जीवित पुनः लाऊँगा। 300 उसी समय लक्ष्मण द्वारा बुलाया गया पाताल लंका का राजा विराघ भी राम की सहायतार्थ आ गया। 301 (ख) विराध द्वारा सीता की खोज में सहायता : विराध ने आते ही राम व लक्ष्मण को अपना स्वामी माना एवं उसने अनेक विद्याधर वीरों को सीता की खोज के लिए रवाना किया। 302 विराध द्वारा भेजे गए विद्याधरों ने दूर-दूर तक सीता की खोज की परंतु उन्हें कहीं भी सीता की जानकारी नहीं मिली। निराश होकर वे लौट आए एवं नतमस्तक होकर खड़े हो गए। 303 सीता की जानकारी तुम्हें नहीं मिली इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। विराध ने पुनः राम को धैर्य एवं आश्वासन दिया कि हे स्वामी, हम पूरी कोशिश करेंगे। आप मेरे साथ पाताल लंका में आइए। पाताल लंका में आप मुझे जब प्रवेश करवा देंगे तब सीता के समाचार हमें सुलभता से प्राप्त हो सकेंगे। 305 (ग) राम का पाताल लंका में गमन : विराध के निवेदन पर राम व लक्ष्मण ससैन्य पाताल लंका के निकट पहुँचे। पाताल लंका में खर-पुत्र सुंद को ज्ञात हुआ कि मेरे पिता का हत्यारा राम विराध के साथ आ रहा है। सुंद भयंकर सेना लेकर युद्धार्थ तैयार हो गया। 306 तब विराध व सुंद में भयंकर युद्ध हुआ। चंद्रणखा ने जब राम को देखा तो तुरंत सुंद को भाग जाने का संकेत किया। सुंद वहाँ से भागकर रावण की शरण में आया। 307 उधर विराध सहित राम व लक्ष्मण ने पाताल लंका में प्रवेश किया। विराध को राज्यासीन 80
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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