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________________ लक्ष्मण को उससे युद्ध करने का आदेश दिया व यह कहा कि आवश्यकता होने पर मुझे बुला लेना। 263 राम की आज्ञा लेकर लक्ष्मण ने युद्धार्थ प्रस्थान किया। (घ) सीता के अपहरण की प्रेरणा एवं निश्चय : लक्ष्मण व खर का युद्ध जारी था। इधर चंद्रणखा रावण के पास गई एवं राम-लक्ष्मण द्वारा उसके पुत्र शंबूक को मारने का वृत्तांत कहा।264 उसने कहा-राम की पत्नी सीता रुप, लावण्य में स्त्रियों की शोभा है। 265 उसका रुप तीनों लोकों में अप्रतिम व अगोचर है। 266 हे भाई! अगर तूं सीता रुपी स्त्री रत्न को ग्रहण नहीं करता तो तू रावण हैं भी नहीं। 267 यह सुनते ही रावण पुष्पक विमान से उड़ा एवं जहाँ राम-सीता थे वहाँ आया। 268 राम की दृष्टि रावण पर पड़ते ही रावण भयग्रस्त हो गया एवं राम-सीता के समीप न जा सका। रावण ने विचार किया कि सीता के हरण में राम कष्ट रुप है। 269 अत: मुझे इसकी पूर्व तैयारी करनी पड़ेगी। अब वह सीता के हरण की तैयारी में जुट गया। (ङ) सीता का अपहरण : सीता-हरण हेतु रावण ने अवलोकनी विद्या का स्मरण कर उसे उपस्थित किया। उसे रावण ने आदेश दिया कि"कुरु साहाय्यमह्नाय मम सीतां हरिष्यतः २० विद्या बोली कि सीता-हरण मेरे लिए असंभव है। परंतु एक उपाय यह है कि, लक्ष्मण के सिंहनाद करने पर राम लक्ष्मण के पास आ जाएँगे क्योंकि राम ने लक्ष्मण को ऐसा कह कर भेजा है।'' 271 रावण बोला "एवं कुर्बिति", तब मैं सीता को उठा ले जाऊँगा। इस प्रकार रावण ने अपहरण की तैयारी कर ली। रावण की आज्ञा से अवलोकनी विद्या ने दूर जाकर साक्षात् लक्ष्मण जैसा ही सिंहनाद किया। 12 जिसे सुनते ही राम सोचने लगे कि कौन है जिसने लक्ष्मण को कष्ट दिया है। राम को चिंतायुक्त होते देखकर सीता बोल उठी "आर्यपुत्र ! किमद्यापि वत्से संकटमागते। विलम्बसे द्रुतं गत्वा त्रायस्व ननु लक्ष्मणम्॥" 273 सिंहनाद सुनकर व सीता के वचनों से प्रेरित हो राम सीता को अकेली छोड़ वहाँ से चल दिए। 274 तभी विमान से उतरकर रावण ने सीता को विमान में चढ़ाने का प्रयत्न प्रारंभ किया। 275 सीता रोने लगी। जटायु दौड़कर आया व विरोध करने के बावजूद भी रावण सीता को पुष्पक विमान में बिठाकर लंका की ओर उड़ गया। 276 (च) खर-दूषण का ससैन्य विनाश : लक्ष्मण ने राक्षसों से युद्ध करते हुए सर्वप्रथम त्रिशिरा को मार दिया। 27 तभी पाताल लंका के राजा चंद्रोदय का पुत्र विराध वहाँ लक्ष्मण की शरण में आया। वह युद्ध में लक्ष्मण की मदद के लिए तैयार हुआ पर लक्ष्मण ने कहा -“धन्यमानान्मया द्विषः । पश्याऽमून्' अर्थात् तू शत्रुवध करते हुए मुझे देख। 278 तब लक्ष्मण ने विराध को पाताल लंका का राजा बना दिया। अब अति क्रोधित हो खर ने लक्ष्मण पर 87
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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