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________________ किया। 17 अयोध्या आकर भरत पिता व भाई की आज्ञा से अखण्डित राज्य के स्वामी बने एवं राज्यभार स्वीकार कर कार्य करने लगे। ययावयोध्या भरतस्तत्र चाडखण्डशासनः । उरीचक्रे राज्यभारं पितु भ्रातुश्च शासनात् । 168 (६) राम का परिभ्रमण (चित्रकूट से दंडकवन तक) - (क) वज्रकर्ण सिंहोदर प्रकरण : अवंति देश में गमन करते हुए राम, लक्ष्मण व सीता को एक पथिक ने अवंति देश के उजाड़ होने की कथा इस प्रकार सुनाई- सिंहोदर अवंति का राजा है तथा दशांगपुर-नायक वज्रकर्ण उसका सामंत। 169 शिकार करते हुए वज्रकर्ण ने जंगल में प्रीतिबर्धन मुनि को देखकर उन्हें वहाँ तपस्या करने का कारण पूछा। 7 मुनि ने कहा, आत्महितार्थ। आत्महित कैसे होता है ? वज्रकर्ण के इस प्रश्र के उत्तर में मुनि ने उसे धर्मोपदेश सुनाया। जिससे वज्रकर्ण ने श्रावक नियम ग्रहण किया। 7 मुनि ने उसे अरिहंत व साधु के बिना किसी को भी नमस्कार न करने का नियम दिया। 172 अब अपने राजा सिंहोदर को प्रणाम करने के स्थान पर वज्रकर्ण ने अपनी मुद्रिका में स्थित मुनिसुव्रतस्वामी के चित्र को प्रणाम करना प्रारंभ किया। 173 सिंहोदर की यह जानकारी मिलते ही वह वज्रकर्ण पर क्रोधित हुआ। एक खलपुरुष ने बज्रकर्ण को सिंहोदर के उस पर नाराज होने की कथा इस प्रकार कही"4-जवानी में मैं व्यापार हेतु उज्जयिनी गया था। तब वहाँ कामलता नामक वेश्या के मोहपाश में एक रात के बदले छ: मास बँध गया। इन छ: मास में मैंने समस्त पितृधन नष्ट कर दिया। 17 तब मेरी प्रेमिका के सिंहोदर की रानी श्रीधरा के स्वर्णकुंडल माँगने पर मैं चोरी करने के निमित्त रात्रि को राजा के महल में गया। 178 वहाँ श्रीधरा एवं सिंहोदर परस्पर इस प्रकार बातें कर रहे थे श्रीधरा-हे नाथ! आपको रात को नींद क्यों नहीं आती? सिंहोदर-नमस्कार से विमुख वज्रकर्ण को मारे बिना नींद कहाँ। 179 यह सुनकर मैंने कुंडल की चोरी नहीं की। तभी अगले दिन सिंहोदर ने वज्रकर्ण पर आक्रमण कर उसे ललकारा कि-हे वज्रकर्ण। मुद्रिका के बिना मुझे आकर नमस्कार कर, अन्यथा तेरा काल समझ। 18 वज्रकर्ण ने नियम दोहराया कि मैं साधु या अरिहंत के बिना किसी को नमस्कार नहीं करता। सिंहोदर की सेना ने अवंति को लूटकर उजाड़ कर दिया। लोग भाग गए एवं घर खाली पड़े हैं। कथा सुनकर राम ने उस पथिक को रत्नसुवर्णमय सूत्र दिया एवं स्वयं ने दशांगपुर में प्रवेश किया। 18 लक्ष्मण ने प्रथम वज्रकर्ण का आतिथ्य ग्रहण कर फिर सिंहोदर से कहा- भरत तुम्हारे व वज्रकर्ण के विरोध का प्रतिकार करते हैं, परंतु सिंहोदर नहीं माना। लक्ष्मण ने उसे युद्ध में परास्त कर बाँध दिया व राम के समक्ष प्रस्तुत किया। ' राम को देखते ही सिंहोदर ने वज्रकर्ण को आधा राज्य दिया व दोनों प्रेम से रहने लगे। 81
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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