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________________ (२) राम का वनगमन और भरत : राम के वनगमन के पश्चात् दशरथ ने भरत को जब राज्य ग्रहण करने हेतु आग्रह किया तब भरत ने स्पष्ट कहा— मैं किसी भी हालत में राज्य ग्रहण नहीं करूँगा एवं स्वयं जाकर राम को अयोध्या लाऊँगा। 155 स्वयं की इच्छा थी ही तथा कैकेयी ने भी आग्रह किया, तब भरत एवं कैकेयी राम को लाने हेतु वन में जाते हैं। 156 अस्तु, राम के जंगल में जाने के पश्चात् भरत लगातार राम को अयोध्या लाने की योजना बनाते रहे । राज्यग्रहण करने की इच्छा उनकी अंत तक नहीं रही। (३) राम वनगमन और कैकेयी : जब सुमंत जंगल से राम के बिना लौट आया तथा भरत ने भी राजपद पर पदासीन होने के लिए मना कर दिया । तब कैकेयी ने दशरथ से कहा - 157 हे स्वामी, राम के वनगमन से मुझे एवं अन्य रानियों को अत्याधिक दुःख हुआ है। मैं पापिनी हूँ, बिना विचारे ये सब कर डाला । पुत्रयुक्त होने हुए भी आज अयोध्या राजा से वंचित हैं । कौशल्या, सुमित्रा व सुप्रभा का रुदन मैं सहन नहीं कर सकती। हे स्वामी, आज मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं भरत के साथ वन में जाकर राम को अयोध्या पुनः लाऊँ । इस प्रकार दशरथ की आज्ञा लेकर कैकेयी ने भरत एवं अनेक अमात्यों के साथ राम को अयोध्या लाने हेतु प्रस्थान किया। 60 158 159 (घ) राम और भरत की भेंट : दशरथ की आज्ञा से भरत, कैकेयी एवं आमात्यादि राम को अयोध्या लाने हेतु वनमें रवाना हुए। लगातार छः दिन तक पैदल चलकर वे सभी राम, लक्ष्मण व सीता के पास पहुँचे। इन्होंने रामलक्ष्मण व सीता को वृक्ष तले बैठे हुए देखा। 161 राम की ऐसी करुण दशा देखकर भारत रोने लगे। भरत ने राम-लक्ष्मण व सीता को प्रणाम किया। उसके बाद वे अचानक मूर्छित हो गये। 162 राम ने आकर उन्हें सचेत कर समझाया व धैर्य दिया। भरत बोले- हे भाई । अभक्त की तरह आप मुझे छोड़ यहाँ क्यों आए। कैकेयी ने मुझे राज्यपद का लोभी घोषित किया है तब यह कलंक मुझे साथ रखकर दूर करो। 163 अगर आप मुझे साथ नहीं ले जाते हैं तो स्वयं अयोध्या लौटकर राज्यश्री को ग्रहण करो जिससे मेरा कुलनाशक कलंक दूर हो। 164 हे भाई, लक्ष्मण अयोध्या में आपके आमात्य होंगे। मैं प्रतिहारी बनूँगा तथा शत्रुघ्र छत्र को धारण करने वाले होंगे। 6 भरत की विनय के बाद कैकेयी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए राम से पुनः लोटने को कहा, मगर राम ने भरत व कैकेयी को समझाकर भरत का राज्याभिषेक वहीं कर दिया । इत्युक्तवोत्थाय काकुत्स्थः सीतानीतजलैः स्वयम् । राज्येऽभ्यपिंचद्भरतं सर्वसामंतसाक्षिकम् ॥ 166 (ड़) भरत का अयोध्या में पुनरागमन :- राम द्वारा बन में ही भरत का राज्याभिषेक करने के पश्चात् राम ने भरत को अयोध्या के लिये विदा 80
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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