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________________ सुमित्रा कैकेयी के कृत्य से खुश तो नहीं है पर उसे गर्व था कि मेरा पुत्र लक्ष्मण बड़े भाई राम का अनुसरण कर रहा है। वह लक्ष्मण से शीघ्र राम के साथ जाने का आग्रह करती है। 144 इस प्रकार सुमित्रा गर्वशीला नारी की साक्षात् प्रतिमा साबित हुई है। (५) राम का परिभ्रमण ( अयोध्या से चित्रकूट तक ) 146 (क) भरत द्वारा राम को वापस लाने का प्रयास : (राम लक्ष्मण एवं सीता का गंभीरा नदी को पार करना ) राम, लक्ष्मण एवं सीता ने जब वनवास के लिए प्रस्थान किया तब अयोध्या वासियों की भारी भीड़ उनके पीछे चल पड़ी जां कैकेयी को दोष दे रही थी। 145 दशरथ भी राम के पीछे चल दिए। राम ने ऐसा देखकर दशरथ एवं समस्त नगरजनों को समझाकर अयोध्या भेजा एवं आगे चलने लगे । 147 'इधर अयोध्या में भरत कैकेयी पर एवं स्वयं पर बार बार क्रोधित हो रहे थे तथा राज्य ग्रहण करना उन्होंने उचित नहीं समझा। 148 दशरथ से रहा न गया, उन्होंने पुन: सामंतसचिवों को राम लक्ष्मण को अयोध्या लाने हेतु राम के पीछे भेजा परंतु राम नही लोटे | यह देख - अयोध्यावासी भी राम के साथ-साथ चलने लगे । चलते हुए वे सब पारिजात पर्वतों के जंगल में पहुँचे। वहाँ सबने भयंकर प्रवाहमयी "गंभीरा" नदी को देखा। 149 राम ने पुनः आए हुए सामंत - सचिवों को दशरथ एवं भरत की सेवा करने की सीख देकर विदा किया। 50 वे सभी नागरिक सचिवादि स्वयं को धिक्कारते, रोते हुए वापस चले । तब राम, लक्ष्मण व सीता ने गंभीरा नदी पार की। (ख) राम का चित्रकूट पहुँचना : राम लक्ष्मण एवं सीता "गंभीर" नदी को पार कर आगे बढ़े। आगे गमन करते हुए‘“सौमित्रिमैथिलसुताहितोऽथ रामो गच्छन्तीत्य गिरिम्ध्वनि चित्रकूटम् " । अर्थात् पृथ्वी पर दैवतुल्य राम मार्ग में चित्रकूट पर्वत पर आए । चित्रकूट पर्वत को पार कर काफी समय पश्चात् वे अवंति देश के एक क्षेत्र में पहुँचे । (ग) राम के वनगमन के पश्चात् अयोध्या में होने वाली घटनाएँ : (१) राम का वनवास और दशरथ : सामंत सचिवों आदि को दशरथ ने राम को पुनः अयोध्या लाने हेतु उनके पीछे भेजा था परंतु उन्होंने खाली हाथ लौटकर दशरथ को संपूर्ण जानकारी दी। 152 तब दशरथ ने भरत से कहा कि हे भरत, राम लक्ष्मण नहीं आए हैं अत: तुम राज्यग्रहण करो और मेरी दीक्षा में बाधक मत बनो । 153 राजा के आग्रह पर भी भरत नहीं माने। अब कैकेयी एवं भरत दशरथ की आज्ञा लेकर पुनः राम को लौटाने वन में जाते हैं परंतु पुनः खाली हाथ लौटते हैं। उन्हें राम के बिना आए देख अत्र दशरथ ने "सत्यभूति" से दीक्षा ग्रहण कर ली । महामुनेः सत्यभूतेः पाशर्वे दशरथोऽप्यथ । भूयसा परिवारेण समं दीक्षामुपाददे । 154
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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