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________________ करने हेतु पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत, बताये गए है। इस प्रकार द्वादशव्रत विवरण है। 14 योगशास्त्र में मदिरादोष, मांसदोष, नवनीतभक्षणादिदोष, मधुदोष, रात्रिभोजनदोष, श्रावक दिनचर्या, इन्द्रिय जय के प्रयत्न, मन शुद्धि, राग-द्वेष जय, मोक्ष, प्राणायाम, योग की आश्चर्यजनक शक्तियां, मन की एकाग्रता, ध्यान के इच्छुक जीवन, पदस्थ, रुपस्थ व रुपातीत ध्यान, चार प्रकार के शुक्लध्यान, जिन महात्म्य, चित्रभेद स्वरुप, परमात्मा स्वरुप, समाधि अवस्था आदि शीर्षकों पर विस्तृत व सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत हुआ है। : परिशिष्ट पर्व परिशिष्ट पर्व का नाम प्रो. याकांची ने स्थविरावलीचरित दिया है। 15 हेमचंद्र इसे महाकाव्य कहते हैं। * डॉ. कीथ इसकी कथाओं को साधारण मानते हैं । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का यह अंतिम हिस्सा है जो स्वतंत्र व ऐतिहासिक है। महावीर के पश्चात् अनेक केवली शिष्यों की परंपरा इसमें दी गई है। ग्रंथ में केवल नामावली ही न होकर उनसे संबंधित कथाएँ भी दी गई हैं। हेमचंद्र ने स्वयं स्वीकार किया है। कि “त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ग्रंथ के बाद उसके अनुसार " यह उसका परिशिष्ट पर्व में विस्तारित कर रहा हूं।"" प्रो. याकोबी, प्रा. लायमन आदि ने इसके कथानक को पर्वग्रंथों से लिया हुआ बताया है । याकोबी ने लिखा है " "The preceding table shows at a glance that the Substance of Hemchandra's Sthviravali Carita is almost entirely derived from old sourcess" 118 & " On the Whole his marrative is a faithfull respresentation of the originals and may be Compared with theru verse to verse." It 119 इसमें तेरह सर्ग हैं। इसमें जम्बुस्वामी से लेकर वज्रसेन तक के राजाओं की ऐतिहासिक कथा दी गयी है। इसकी लोककथाएं व दृष्टांत सराहनीय हैं। लोकवार्ताओं (फोल्कटेल्म) की दृष्टि से भी यह ग्रंथ उपयोगी है। परिशिष्टपर्व की दो सुन्दर आवृत्तियां आज भी मुद्रितावस्था में मौजूद हैं। प्रथम प्रो. यांकोबी संपादित विब्लिआथेका इन्का सीरीज नं. ९६ द्वितीय भावनगर की पं. हरगोविंददास की विस्तृत प्रस्तावना वाली संपादित कृति । जैन लोकाचार जानने एवं जैन प्रथाओं का उद्गम इस ग्रंथ में देखने को मिलता है। 120 वीतरागस्तोत्र : यह स्तवन ग्रंथ है। अपने आश्रयदाता कुमारपाल के लिए भक्तिभावभरी स्तुतियों से युक्त यह महत्वपूर्ण ग्रंथ है। वीतरागस्त्रोत की रचना के समय कुमारपाल ने जैनधर्म ग्रहण कर लिया था। 21 इसके बीम प्रभाग " प्रकाशों" में बांटे गये हैं जिनमें १८३ श्लोक हैं। 122 इन श्लोकों में भक्ति व दर्शन का पुट नजर आता है। विषय विवरण के शीर्षक निम्नप्रकार में हैं १. प्रस्तावना स्तव २. सहजातिशय वर्णन स्तव ३ कर्मक्षय जातिशय वर्णन स्तव, ४ मुकृतिशय वर्णन स्तव ५ प्रतिहार्य ६ 44
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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