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________________ वृत, समवृत, विषमवृत, अर्द्धसमवृत, पद, यति आदि का विवरण है। दूसरे अध्याय में समवृत व दंडक की विवेचनान्तर्गत कुल ४११ छंद उपलब्ध होते हैं। तीसरे में अर्द्धसम, विषम, वैतालिप ७२ प्रकार के छंदों के लक्षण हैं। गालितक, खंजक, शीर्षक आदि के लक्षण चौथे अध्याय में हैं। पाँचवें अध्याय में उत्साह, रड्डा, धवलमंगल आदि छंदों की चर्चा है। छठे अध्याय में अपभ्रंश के छंदों का परिचय एवं षट्पदी व चतुष्पदी के नियमों का वर्णन है। सप्तम अध्याय में अपभ्रंश के द्विपदीयों का वर्णन है। अंतिम अध्याय में विभिन्न वृत्तों की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। इस प्रकार छंदोनुशासन गेय तत्व के प्रकरणयुक्त सुन्दर व सफल प्रयास कहा जा सकता है। प्रमाण मीमांसा : तत्वज्ञान की सिद्धि के लिए तर्कशास्त्र की आवश्यकता प्रत्येक आचायों को रही है। प्रमाण मीमांसा की रचना करके हेमचंद्र न्यायाचार्य के पद पर आसीन हो गए हैं। यह ग्रंथ पूर्णरुप से प्राप्त नहीं हो रहा है। इस ग्रंथ की रचना शब्दानुशासन, काव्यानुशासन एवं छंदोनुशासन के बाद हेमचंद्र द्वारा की गई। यह ग्रंथ "वादानुशासन' नाम से भी जाना जाता है। सूत्र शैली के इस ग्रंथ को पांच अध्यायों में विभक्त किया गया है। अपूर्ण इस ग्रंथ के केवल ९९ सूत्र ही प्राप्त होते हैं। डॉ. वि. भा. मुसलगांवकर १०० सूत्र उपलब्ध होना मानते हैं। यह एक दर्शन ग्रंथ है। "अनेकांतवाद, प्रमाण, पारमार्थिक प्रत्यक्ष की तात्विकता, इन्द्रिय ज्ञान का व्यापारक्रम, परोक्ष के प्रकार, अनुमानकाव्यों की प्रायोगिक व्यवस्था, विग्रह स्थान, जय-पराजय व्यवस्था, सर्वज्ञत्व का समर्थन आदि मूल विषयों पर इस ग्रंथ में विचार किया गया है। इस ग्रंथ का प्रत्येक अध्याय दो आह्निक में परिसमाप्त होता है। यह हेमचंद्र के जीवन की अंतिम कृति मानी जाती है। ___ प्रथम अध्याय के प्रथम आह्निक में ४२ सूत्र हैं। इन सूत्रों में प्रमाण लक्षण, प्रमाण विभाग, प्रत्यक्ष के लक्षण, इन्द्रिय ज्ञान व्यापार, प्रमाणफल आदि की चर्चा है। द्वितीय आह्निक में परोक्ष लक्षण, स्मृति प्रत्यभिज्ञान, अनुमान के लक्षण, साध्य के लक्षण, स्वार्थ के लक्षण, दृष्टांत वर्णन आदि हैं। द्वितीय अध्याय के प्रथम आह्निक में ३४ सूत्र हैं जिनमें प्रतिज्ञा, हेतु. उदाहरण, उपनय, व निगमन इन पांच अवयवों के लक्षण हैं। साथ ही हेत्वाभास, आठ प्रकार के साध्यदृष्टांतभ्यास जाति, छल, वाद के लक्षण, गल्प, वितंडा आदि के लक्षण, ज के लक्षण आदि का वर्णन मिलता है। सारंशतः केवल २ अध्याय व ३ आह्निक ही मिलते हैं। प्रमाण मीमांसा की सर्वश्रेष्ठ देन है - अनेकांतवाद। हेमचंद्र ने सर्वधर्मसहिष्णुत्व व परमतसहिष्णुत्व की भावना को बल दिया है। इसके विचार संप्रदायातीत हैं। प्रमाणमीमांसा में, दर्शन जगत में तथा तर्क साहित्य में परमत के प्रति सहिष्णुता का प्रसार हुआ है। इस ग्रंथ के लेखन से न केवल 42
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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