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________________ काव्यनुशासन : अलंकार ग्रंथों की परंपरा का अनुपम ग्रंथ है काव्यानुशासन। यह ग्रंथ जयसिंह के शासनकाल में लिखा गया था। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि इस अलंकार ग्रंथ में कुमारपाल का कहीं भी उल्लेख नहीं है। २०८ सूत्रों के इस ग्रंथ के तीन भाग हैं – सूत्र, व्याख्या एवं कृति। इसके ८ अध्यायों में क्रमशः २५, ५९, ९०, ९९, ३१, ५२ तथा १३ सूत्र आए हुए हैं। हेमचंद्र ने काव्यानुशासन के लिए राजशेखर (काव्यमीमांसा), मम्मट (काव्यप्रकाश), आनंदवर्धन (ध्वन्यालोक), अभिनवगुप्त (लोचन) आदि से पर्याप्त मात्रा में सामग्री ली। काव्यानुशासन में काव्योत्पत्ति के कारण, काव्य-परिभाषा, अलंकारों के लक्षण व परिभाषा, रस विवेचन आदि पर विस्तृत, तुलनात्मक एवं सोदारहण व्याख्या प्रस्तुत की गई है। इस के प्रयोजन पर विचार करें तो लगता है कि लोकोपयोग ही इसका मुख्य हेतु है। ब्राह्मण पूर्वाचार्यों का अनुगमन करते हुए लोकहितार्थ यह ग्रंथ रचा गया। इस ग्रंथ में लोकोपयोग के अलावा दूसरा प्रयोजन नजर नहीं आता।" कृति के प्रथम अध्यायान्तर्गत काव्यप्रयोजन, व्युत्पत्ति, काव्यगुणदोष, शब्दशक्ति आदि चर्चित हैं। द्वितीय अध्याय में रसोत्पत्ति, रसाभास, भावाभास व उत्तम मध्यम एवं निम्न काव्य के लक्षण दिये गए हैं। तृतीय अध्याय में रस, भाव व शब्दार्थ वर्णन है। चतुर्थ अध्याय में काव्यगुण विवेचित हैं। पांचवे एवं छठे अध्याय में क्रमशः शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दिये गए हैं। सातवें अध्याय में नायक-नायिका लक्षण हैं। आठवें अध्याय में प्रबंध काव्य भेद की चर्चा आई है। इस प्रकार काव्यानुशासन एक अलग प्रकार का शिक्षा ग्रंथ है जो विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इस ग्रंथ में संपूर्ण काव्यांगों की विवेचना है। अलंकारशास्त्र के उत्कृष्ट ग्रंथों में आज आचार्य हेमचंद्र के काव्यानुशासन की गणना होती है। ___ छंदोनुशासन : शब्दानुशासन एवं काव्यानुशासन के बाद हेमचंद्र ने छंदोनुशासन की रचना की। उसका उल्लेख हेमचंद्र ने छंदोनुशासन के प्रथम अध्याय के प्रथम थोक में किया है ।102 यह भी आठ अध्यायों में विभक्त क्रमशः १६, ४१५, ७३, ९१, ४९, ३०, ७३ एवं १७ सूत्रों वाला ग्रंथ है। इस प्रकार ७६४ सूत्रों से युक्त छंद शास्त्रीय ग्रंथ है । हेमचंद्र ने इस ग्रंथ में तत्कालीन समय तक आविष्कृत एवं पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा प्रयुक्त समस्त संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश छंदों का समावेश करने का यथासंभव प्रयत्न किया है। "संस्कृत में आज तक जितने छंदरचना संबंधी ग्रंथ प्राप्त हुए हैं उन सबमें हेमचंद्रकृत छंदोनुशासन सर्वश्रेष्ठ है, ऐसा कथन करने में अत्युक्ति नहीं होगी। इस शास्त्र में हेमचंद्र ने भरत, पिंगल, स्वयंभू, माण्डव्य, कश्यप, सैलव व जयदेवादि प्राचीन छंद शास्त्रियों का भी उल्लेख किया है। छंदोनुशासन के प्रथम अध्याय में संज्ञाप्रकराणान्तर्गत वर्ण, मात्रा, 41
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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