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________________ किए हैं । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित एक विशाल ग्रंथ है। इसका सातवां पर्व जैन रामायण नामसे विख्यात है । आश्चर्य है कि केवल इस पर्व में ही लगभग साठ हजार राजा रानियाँ एवं अन्य लोगों ने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की है। तो फिर इस संपूर्ण विशालकाय ग्रंथ के दस पर्वों में दीक्षा लेने वालों की संख्या की कल्पना पाठकवृन्द सहज ही कर सकेंगे। 154 159 161 अनरण्य, जैन रामायण के प्रथम अध्याय में वाहन, 152 तडित्केस, 153 नीलकंठ एवं अशनिवेश Iss को दूसरे अध्याय में वैश्रवण, 156 नरेन्द्र 157 ( वालि के पिता) बाली 158 सहस्त्राशुं, 160 ब्रह्मरूचि, कूर्मि 2 (स्त्री) सुमित्र, 163 आनंदमाली, 164 एवं इन्द्र 165 के दीक्षा लेने का वर्णन आया है। तीसरे अध्याय के अंतर्गत केवल सुकंठ के दीक्षा की चर्चा है। 16 चौथं अध्याय के प्रारंभ में वज्रबाहु उदयसुन्दर, मनोरमा एवं अन्य पच्चीस राजकुमारों के दीक्षा का विवरण प्राप्त होता है। 167 तदनन्तर इसी अध्याय में विजयराजा, 168 पुरंदर, 169 कीर्तिधर 170 एवं हिरण्यगर्भ 7 दीक्षा ग्रहण करते हैं। सौदास 172 व सूभूति, 173 अनुकोशा, 174 पिंगल, 175 कुंडलमुंडित, चंद्रगति, 177 नंदिवर्धन, 178 कुलनंदन व सूर्यजय 179 तथा दशरथ 180 की दीक्षा का विवेचन भी इसी अध्याय में आया है । पाँचवे अध्याय में कपिल ब्राह्मण, अतिवीर्य, 182 वसुभूति व उसके पुत्र 183 उदित - मुक्ति, कुलभूषण, देशभूषण व महालोचन, 184 सुंदक व उसके पाँच सौ राजपुत्र 85 तथा पुरंदरकश्यय, इन सभी के जैन व्रत धारण करने का वृत्तांत हेमचंद्र ने दिया है। 176 I 181 186 अध्याय छः एवं सात में दीक्षा का कोई प्रसंग प्राप्त नहीं होता । आठवें अध्याय से दसवें अध्याय तक पुनः दीक्षार्थियों की लम्बी लाइन नजर आती है। आठवें अध्याय में रतिवर्धन, 187 कुंभकर्ण, मंदोदरी, इन्द्रजीत व मेघनाद, 188 ऋषभदेव तथा अन्य चार हजार राजा, 189 भरत व एक हजार राजा 190 तथा भरत की माता कैकेयी 191 के दीक्षा का वर्णन हैं। नवें अध्याय में केवल जयभूषण मुनि 192 एवं सीता 193 ही दीक्षित हुए हैं। 195 197 1 लक्ष्मण के 204 इन्द्रजीत 201 202 दसवें अध्याय में भी अनेक दीक्षार्थियों के वृत्तांत हैं। नयनानंद 194, वेगवती, 196 प्रभास, पुनर्वसु, 198 प्रियंवर व शुभंकर 199 तथा राम का सेनापति कृतांतवदन 200 के साधु बनने का वर्णन इसी अध्याय में है । तत्पश्चात् रामकथा के शीर्षपात्रों के दीक्षा लेने का वर्णन आता है। जिनमें - २५० पुत्र, अन्य ७५० राजा-रानियाँ, 203 हनुमान, पुत्र व देवता, 205 शत्रुध्र, सुग्रीव, विभीषण एवं विराध उल्लेखनीय हैं। दीक्षा लेने की अंतिम कड़ी के रूप में स्वयं राम, 1207 सोलह हजार राजाओं 208 एवं सैतीस हजार रानियों 209 के साथ जैन धर्म में दीक्षित होकर "राम मुनि" की संज्ञा प्राप्त करते हैं। इस प्रकार जैनाचार्य हेमचंद्र की जैन रामायण के समस्त पात्रों को दीक्षा देने की योजना पूर्ण होती है । लवकुश, 206 आदि के नाम 199
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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