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________________ (१३) लक्ष्मण की सोलह हजार तथा राम की भी अनेक रानियों का होना : ब्राह्मण परंपरानगानी मानस में राम की पत्नी का नाम सीता एवं लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला है। दोनों भाइयों ने अतिरिक्त कोई विवाह नहीं किया था। परंतु हेमचंद्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में राम व लक्ष्मण के रनिवास का वर्णन निम्र प्रकार से किया है। __ लक्ष्मण के सोलह हजार रानियाँ हुईं, जिनमें विशल्या, रूपवती, वनमाला, कल्याणमाला, रत्नमाला, जितपद्मा, अभयवती एवं मनोरमा ये आठ पट्टरानियाँ हुईं। इनसे लक्ष्मण के ढाई सौ पुत्र हुए, जिनमें आठ पट्टरानियों के आठ पुत्र मुख्य थे। ये आठ-पुत्र इस प्रकार थे- विशल्या का श्रीधर, रूपवती का पृथ्वी तिलक, वनमाला का अर्जुन, जित्पदमा का श्रीकशी, कल्याणमाला का मंगल, तथा मनोरमा का पुत्र सुपार्श्वकीर्ति। रतिमाला का पुत्र विमल तथा अभयवती का सत्यकार्ति नामक पुत्र था। राम की चार रानियाँ थी, जिनके सीता, प्रभावती, रतिनिभा एवं श्रीदामा नाम थे। 146 (१४) सीता का स्वयं के हाथों केश उखाड़ कर जैन धर्म में दीक्षित होना : तुलसी ने मानस को राम के राज्यभिषेक के साथ ही विराम दिया हैं। वल्मीकि रामायण में लव-कुशकांड के अंतर्गत राम द्वारा सीता का परित्याग एवं सीता के पृथ्वी में समाने तक का वृत्तांत मिलता है। परंतु जैनाचार्य हेमचंद्र ने अपने पूर्ववर्ती जैन रामकथाकारों का अनुगमन करते हुए यह प्रकरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है ___लोकापवाद को मिटाने के लिए राम ने सीता को लोक के सामने कुछ दिव्य करने का आदेश दिया। 147 तदनुसार सीता ने अग्नि में प्रवेश कर अपने सतीत्व को प्रमाणित कर दिया। 148 तब राम ने सीता से क्षमा मांगी एवं घर चलकर पूर्व की तरह रहने का आग्रह किया।4) सीता ने कहा- "यह मेरे कर्मों का दोष है। अब मैं दीक्षा ग्रहण करूँगी। 150 यह कह कर सीता ने अपनी मुष्टि से केश उखाड़कर राम को अर्पित किए तथा जयभूषण मुनि से दीक्षा ग्रहण की। 51" संसार से सीता की विरक्ति का यह दृश्य जैन समाज की धर्म प्रचारात्मक मौलिक एवं नवीन कल्पना है। । (१५) रामकथा के समस्त पात्रों का जैनधर्म में दीक्षित होना : जैन रामायण की कथा को अगर हजारों ऐतिहासिक एवं कल्पनात्मक पात्रों को जैन धर्म में दीक्षित करने की कथा कहीं जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी। हेमचंद्र ने कथा के प्रारंभ से अंत तक जितने भी पात्रों की कल्पना की है इन सभी को उन्होंने जैन धर्म में दीक्षित कर लिया है। कथा में आए पात्रों के अतिरिक्त भी स्थान-स्थान पर दीक्षा लेने वालों के साथ हजारों राजारानियों के जिन शासनान्तर्गत दीक्षित होने के वृत्तांत हेमचंद्राचार्य ने प्रस्तुत 198
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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