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________________ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पर्व 7 में छोटे-मोटे सैकड़ो ऐसे प्रसंग हैं जिन्हें इसी परंपरा में रखा जा सकता है । इस परंपरा की इन नवीन उद्भावनाओं के पीछे जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के अतिरिक्त भी कोई विशिष्ट आधार हो सकता है। यह एक स्वतंत्र शोध का विषय भी बन सकता है। इन जैनरामकथात्मक नवीन प्रतिस्थापित मूल्यों की प्रामाणिकता जब तक संदिग्ध रहेगी तब तक यह तथ्य ब्राह्मण परंपरानुगामी रामकथा पाठकों के गले उतरने वाले नहीं हैं। ऋग्वेद को विद्वानों ने विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ माना है। जब इस मूलाधार स्रोत (वेद) से लेकर वर्तमान तक भी परंपरानुगामी रामकथात्मक मूल्य थे, हैं और रहेंगे। तब इन जैन मूल्यों को किस प्रकार जगत हृदयंगम करेगा यह एक विचारणीय प्रश्न है । इन मान्यताओं को प्रमाणित करने में जैन परंपरा के बारहवीं शताब्दी के पूर्व के संस्कृत, अपभ्रंश एवं प्राकृत के ग्रंथ ही सहायता देते हैं। हर युग का अपना साहित्य तत्कालीन विशेषताओं से युक्त होता है, इसमें संदेह नहीं । परंतु लेखक या कवि की सफलता उसके कथ्य के सार्वजनीकरण में छिपी रहती है जिसका हमें आज भी आभास-सा प्रतीत होता है । समाधानार्थ वर्तमान जैन कवि-लेखकों आदि को इस पर विचार करना होगा । इन्हें मध्यम मार्ग अपनाना होगा। अगर रामकथात्मक लेखक ब्राह्मण एवं श्रवण परंपराओं की मान्यताओं को मिलेजुले रूप एवं व्यावहारिकता से युक्त बनाकर आज भी प्रस्तुत करें तो मैं समझता हूँ, उनके कथ्य को ब्राह्मण परंपरा के लोग भी सर्हष स्वीकार करेंगे। इससे केवल ब्राह्मण परंपरा को ही नहीं श्रमण परंपरा को भी लाभ प्राप्त होगा एवं दोनों परम्पराएँ धार्मिक रूप से एक दूसरे के नजदीक पहुँच सकेंगी। इसमें सबसे बड़ा फायदा हमारी राष्ट्रीय एकता के निर्माण का होगा, साथ ही सांस्कृतिक समत्व एवं भावात्मक एकता अधिक बलवती होगी। मेरा मानना है कि इन मान्यताओं के पीछे साम्प्रदायिक भाव न हो और गहरे आध्यत्मिक " ऐतिहासिक रहस्य छिपे हों तो प्रकाश में आने चाहिए । भविष्य इनपर नवीन शोध से अनेक नव्य तथ्यों का प्रकाशन हो सकता है।" ' २. ३. ४. ५. ६. संदर्भ-सूची : त्रि शु. पु. च. पर्व ७ १/१३१ वही - १ / १५१, १५८, १५५. १५७ वही - १०/६८ वही - २ / २१, २२, २७, ३०, ३३, ३५, ७३, वही - २ / ८९-९० वही - २/२७७ : - 200
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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