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________________ (५) दशरथ की मगध-विजय : त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित का यह प्रसंग रानी कैकेयी से जुड़ा हुआ है। तुलसी के मानस से यह सर्वथ भिन्न एवं नया प्रसंग है जो इस प्रकार है- दशरथ एवं जनक पृथ्वी पर घूमते हुए उत्तरापथ की ओर आए। यहां केतुकमंगल नगर के राजा शुभमीति की रानी पृथ्वीश्री से उत्पन्न द्रोणमेघ की बहन कैकेयी के स्वयंवर के सभा मंडप में दशरथ पहुँचे। साक्षात् लक्ष्मी के समान उस कैकेयी ने अनेक राजाओं की उपस्थिति में भी दशरथ के गले में वरमाला पहना दी। 84 तिरस्कार को सहन न कर सकने वाले वे सभी राजा दशरथ को अकेले जानकर युद्धार्थ सज्जित हो दशरथ को ललकारने लगे। 85 उस समय दशरथ के पक्ष में केवल शुभमीति के अलावा कोई भी नहीं था। उस समय दशरथ ने कैकेयी से कहा- हे प्रिये, अगर तुम हमारी सारथी बन जाओ तो हम इन सभी राजाओं को हरा सकते हैं। बहत्तर विद्याओं में प्रवीण कैकेयी रथ पर आरूढ़ हुई एवं दशरथ धनुष-बाण लेकर शत्रु से लोहा लेने लगे। कैकेयी ने अति वेग से रथ चलाकर सफल सारथीत्व निभाया। इधर दशरथ ने शत्रुओं को रथों सहित ध्वस्त कर दिया एवं बुरी तरह हरा दिया। 88 इस प्रकार समस्त राजाओं को मात देकर दशरथ ने कैकेयी से विवाह किया। 89 विवाह के पश्चात् प्रसन्न राजा ने रानी को वरदान मांगने हेतु कहा १० परंतु रानी ने कहा- हे स्वामी, मैं समय पर वरदान मागूंगी, आपके पास इसे मेरी अमानत समझिए। 1 इस प्रकार मगधपति से विजय प्राप्त कर दशरथ राजग्रह नगर में रहे। 2 मगध पर इस प्रकार की विजय का यह प्रसंग भी मानस से सर्वथा भिन्न एवं नवकल्पित है। (६) राम वनवास के नव्य प्रसंग : हेमचंद्र ने अपनी जैन रामायण में राम वनवास प्रसंगान्तर्गत अनेक नए प्रसंगों का सृजन किया है। ये प्रकरण ऐसे हैं जिनका वाल्मीकि रामायण से ले कर छायावादी निराला की शक्तिपूजा तक कहीं भी समावेश नहीं है। हाँ, रविणेश, स्वयंभू आदि जैन राम कथाकारों ने इन प्रसंगों को अवश्य स्थान दिया है। संक्षिप्त में राम वनवास के ये मानस से भिन्न प्रसंग इस प्रकार है १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में मंत्री वज्रकर्ण व उसके राजा सिंहोदर का वृत्तांत आता हैं। 93 वज्रकर्ण एक साधु से मुनि के बिना किसी अन्य को नमस्कार न करने का नियम लेता है जिसकी जानकारी उसके स्वामी सिंहोदर को होने पर वह उस पर क्रोधित होता है। सिंहोदर ने वज्रकर्ण पर आक्रमण कर उसके राज्य अवंति को उजाड़ दिया। 5 राम-लक्ष्मण को यह समाचार मिलते ही लक्ष्मण ने सिंहोदर को युद्ध में परास्त कर राम के समक्ष प्रस्तुत किया। राम ने दोनों की संधि करवाई जिससे वे दोनों प्रेम से रहने लगे।" 194
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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