SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिया। हिरण्यगर्भ का विवाह मृगावती से हुआ जिसने नधुप नामक पुत्र को जन्म दिया। हिरण्यगर्भ ने नधुष को राज्य देकर विमलमुनि से संयम ग्रहण किया। 6 नधुष की पत्नी सिंहिका पर एक बार नधुष को संदेह हो गया जिससे उसने उसे त्याग दिया परंतु उसके पतिव्रत धर्म पर नधुष को पुनः विश्वास हो गया व रानी को अपनाने से उसके सौदास नामक पुत्र हुआ। 67 नधुष ने सौदास को राज्यभार देकर व्रत ले लिया। 68 सौदास नरमांसभक्षी था। 69 मंत्रियों को यह खबर मिलते ही उन्होंने सौदास को राज्य पद से उतारकर जंगल में निकाल दिया व उसके पुत्र सिंहरथ को राजा बनाया। 70 जंगल में भटकते हुए सौदास को एक साधु मिला। धर्मउपदेश सुनकर तथा मद्यमांसादि को त्यागकर वह श्रावक बन गया। उसके वाद सिंहरथ का पुत्र ब्रह्मरथ, ब्रह्मरथ का चतुर्मुख, चतुर्मुख का पुत्र हेमरथ एवं हेमरथ पत्र शतरथ राजा हए। 72 उसके बाद, क्रमशः उदयप्रथु, वीररथ तथा रुद्ररथ राजा हुए तत्पश्चात् व्यरथ, मांधाता व वीरसेना राजा हुए। 3 वीरसेना के बाद प्रतिमन्यु, प्रतिबंधु, रविमन्यु एवं वसंततिलक नाम के राजा हुए। 74 आगे क्रमशः कुबेरदत्त, कंथु, शरभ, द्विरद, सिंहदसन एवं हिरण्याकश्यप राजा हुए। 5 आगे इसी इक्ष्वाकुवंश में पुंजस्थल, ककुस्थ एवं रघु हुए। अनेक राजाओं ने मोक्ष गमन किया फिर भी अयोध्या के लिए स्नेही राजा अनरण्य हुए। अनरण्य के दो पुत्र अनंतरथ एवं दशरथ हुए। 7 राजा अनरण्य ने मात्र एक माह के पुत्र दशरथ पर राज्यभार छोड़ बड़े पुत्र अनंतरथ और सहस्त्रकिरण मित्र के साथ व्रत ग्रहण किया। वही दशरथ युवा होकर महान राजा बना एवं उसने अर्हत (जैन) धर्म को धारण किया। १ दशरथ का विवाह दर्भस्थल नगर के स्वामी सुकौशल राजा की रानी अमृतप्रभा से उत्पन्न अपराजिता नामक पवित्र कन्या से हुआ। दूसरा विवाह कमलसंकुशल नगर के राजा सुबोध तिलक की रानी मित्रा से उत्पन्न कैकेयी नामक कन्या से हुआ। तीसरा विवाह सुप्रभा नामक राजकन्या से हुआ। 80 प्रथम रानी अपराजिता के गर्भ से जिस पुत्र का जन्म हुआ उसका नाम दशरथ ने लक्ष्मी का निवास स्थल कमल (पद्म) रखा जो कि लोक में "राम" नाम से विख्यात हुआ। 81 सुमित्रा के गर्भ से जो पुत्र हुआ दशरथ ने उसका नाम "नारायण" रखा जो संसार में "लक्ष्मण'' नाम से विख्यात हुआ। 82 इसी तरह कैकेयी ने भरत को तथा सुप्रभा ने शत्रुध्र नामक पुत्र को जन्म दिया। 3 इसी तरह बीसवें तीर्थंकर के समय के राजा विजय से क्रमशः रामलक्षमण, भरत व शत्रुध तक की वंशावली का भव्य इतिहास हेमचंद्र ने जैन रामायण में प्रस्तुत किया है जो ब्राह्मण रामकथा परंपरा के लिए नवीन उपलब्धि कही जा सकती है। 193
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy