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________________ २. दूसरा प्रकरण-कल्याणमाळा : बालिख्लिय- रुद्रभूति का आता है। तदनुसार वन में विचरते लक्ष्मण को एक बार कुबेरपुर के राजा कल्याणमाला ने भोजन हेतु निमंत्रित किया। 98 राम उस स्त्री वेशधारी कल्याणमाला को समझ गए। १ तब उसने अपना वृत्तांत राम को सुनाया। 10 राम को यह ज्ञात होते ही उन्होंने कल्याणमाला के पिता वलिखिल्य को म्लेच्छों से मुक्त कराया। 101 ___३. कपिल ब्राह्मण प्रकरण - वन में भटकते हुए राम-लक्ष्मण एवं सीता जल पीने के लिए कपिल ब्राह्मण के घर गए। 12 कपिल पत्नी सुशर्मा ने उन्हें शीतल जल पिलाया। कपिल घर आते ही रामादि पर क्रोधित होकर उन्हें अपशब्द कहने लगा। 13 अब लक्ष्मण ने क्रोधित हो कपिल को आकाश में घुमाकर राम की आज्ञा से पुनः पृथ्वी पर पटक दिया। 104 ४. राम-लक्ष्मण व सीता वन में एक वृक्ष के नीचे ठहरे जहाँ गोकर्ण नामक एक यक्ष रहता था। 105 आठवे बलभद्र व वासुदेव के आगमन को जानकर उस यक्ष ने इनके लिए रामपुरी नामक भव्य नगरी निर्मित कर डाली। 16 वहाँ वह कपिल ब्राह्मण अपनी रानी सुशर्मा के साथ आया जिसे राम ने क्षमा कर दिया एवं धन देकर बिदा किया। 107 राम जब बिदा हुए तो गोकर्ण यक्ष ने राम को "स्वयंप्रभ" हार, लक्ष्मण को दो कुंडल एवं सीता को चूड़ामणि व वीणा भेंट दी।108 ५. विजयपुर नगरी के राजा महिधर व रानी इन्द्राणी की पुत्री वनमाला ने बचपन से ही लक्ष्मण को पति माना था। 109 वनमाला को यह ज्ञात हुआ कि मुझे पिता ने किसी अन्य पुरुष को दे दिया है तब वह आत्महत्या करने लगी। 110 तभी लक्ष्मण वहाँ पहुँच गए एवं वनमाला को बचाकर उसके पिता महीघर को युद्ध में परास्त किया। 11 तब महीधर ने सस्नेह वनमाला लक्ष्मण को सौप दी। ६ अतीवीर्य राजा भरत को अधीन करने के लिए एक दिनु ससैन्य रवाना हुआ। 112 राम-लक्ष्मण को यह समाचार मिलते ही उन्होंने अपनी संपूर्ण सेना को स्त्रीवेशयुक्त 11 बनाकर अतिवीर्य को हरा दिया व बंदी बनाया। तब अतीवीर्य ने भरत की सेवा-स्वीकार की। 114 ७. राम-लक्ष्मण व सीता जब क्षेमांजलि नगरी पहुँचे तब उन्हें जितपद्मा के स्वयंवर की जानकारी मिली। 115 राम की आज्ञा से लक्ष्मण ने शत्रुदमन के पाँचों प्रहारों को सहन कर जितपद्मा से विवाह किया।16 . ८. वंशशैल पर्वत पर होने वाली भयंकर ध्वनि से इस क्षेत्र के लोग कष्ट में थे। राम, लक्ष्मण व सीता उस पर्वत पर गए व अपने तेज से उन उपद्रवी मुनियों को कैवल्य ज्ञान प्राप्त करवाया। 118 उन दोनों मुनियों ने राम की पूजा की एवं वंशस्थल के राजा सुरप्रभ ने आकर उस पर्वत का नाम रामगिरी दिया। 119 195
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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