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________________ ७. "अनुष्ट प्'' काव्य का प्रधान छंद हैं। ८. "अथ" एवं "ततः" शब्द भी अनेक पदों में देखने को मिलते हैं। ९. वंशोत्पत्ति एवं वंशावलियों का भरपूर वर्णन किया गया है। १०. काव्य में अनेक स्तुतियों की योजना समाहित है। निष्कर्षतः वक्ता-श्रोता योजना, काव्य का महात्म्य कथन एवं कथाकथन के पूर्व अनुक्रमणिका के अतिरिक्त पौराणिक शैली की समस्त विशेषताएँ त्रिषिष्टिशलाकापुरुषचरित में प्राप्त होने के कारण यह काव्य "पौराणिक काव्य" की श्रेणी में आता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का चरितकाव्यत्व : त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की शैली जीवनचरित शैली है। काव्य के प्रारंभ में प्रतिवासुदेव रावण के वंशजों के वर्णन हैं। अनेक पात्रों के पूर्वभव वृत्तांत आए हैं। प्रकृति वर्णन सामान्य ही आए हैं। काव्य में वीरता, धर्म एवं वैराग्य का समन्वय मिलता है। नायक राम अंत में विरक्त हो जैन मुनि बन जाते हैं। वक्ता-श्रोता की अल्प योजना भी नजर आती है। अनेक अलौकिक कार्यों को समाविष्ट किया गया है। कृति का उद्देश्य जैन धर्म का प्रचार-प्रसार ही रहा है अतः इसे प्रचारात्मक ग्रंथ कहा जा सकता है। चरितकाव्य की कसौटी पर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ग्रंथ खरा नहीं उतरता। प्रथमतः यह वर्णनात्मक है, इसे सरल-स्वाभाविक लोकोन्मुख काव्य नहीं कहा जा सकता। द्वितीय, इसमें वक्ता व श्रोता की योजना नहीं है। तृतीय, यह प्रेमकथा नहीं है। चतुर्थ, इस काव्य को गुंफित एवं जटिल नहीं कहा जा सकता तथा पंचम, इसकी शैली चमत्कारपूर्ण, अलंकृत व पाण्डित्य प्रदर्शन युक्त है जो चरितकाव्योचित नहीं है। इस विवेचन से हम इस सारांश पर पहुँचते हैं कि त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित "पौराणिक काव्य के लक्षणों से युक्त है परंतु इसे चरितकाव्यों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जबकि विद्वानों ने इसकी गणना चरितकाव्यों में की है।" त्रिषष्टिशलाकापुरुष का महाकाव्यत्व : त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित को केवल पौराणिक काव्य अथवा चरितकाव्य अथवा महाकाव्य कहने के स्थान पर "पौराणकि चरित महाकाव्य' कहना अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता हैं एतदर्थ पौराणिक काव्य एवं चरितकाव्य के रूप में हम जैन रामायण के लक्षणों पर दृष्टि डाल चुके हैं। यहाँ हम त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित के महाकाव्यत्व पर विचार करेंगे। ___ महाकाव्य के भारतीय एवं पाश्चात्य लक्षणों की जानकारी हम पूर्व में दे चुके हैं। इन लक्षणों पर आलोच्य ग्रंथ कहाँ तक खरा उतरता है यह तथ्य परीक्षणीय है। 167
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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