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________________ २. प्रारंभ प्रायः वक्ता व श्रीता से ही होता है। ३. प्रधान रस शांत, वीर, शृंगारादि अंगी रस अन्य। युद्धादि के वाद . पात्रों में वैराग्य भावना की प्रचुरता मिलती है। ४. मुख्य आधिकारिक कथा के साथ सहायक कथाएँ भी निबद्ध रहती हैं। आधिकारिक कथा में किसी अवतार या तीर्थंकर का चरित्र निबद्ध। अलौकिक, अप्राकृतिक व अतिमानवीय शक्तियों, कार्यों का समावेश। स्वधर्म की प्रशंसा के साथ परधर्म से धृणा। सूक्तियों का बाहुल्य। ७. प्रधान छंद प्रमुखतः अनुष्टप् ही होता है। ८. "अथ" और ततः शब्दों का प्रायः आधिक्य रहता है। ९. कथा-कथन के पूर्ण अनुक्रमणिका दी जाती है। १०. काव्य के महात्म्य-कथन तथा अपने धर्म ग्रहण के प्रति श्रोता को बाँधने की प्रवृत्ति का इसमें स्पष्ट परिलक्षण होता है। ११. सृष्टि के विकास, विनाश, वंशोत्पत्ति एवं वंशावलियों का वर्णन होता है। १२. अनेक स्तुतियों की योजना होती है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित हेमचंद्राचार्यकृत संस्कृत का पौराणिक शैली का काव्य है। इस ग्रंथ में पौराणिक शैलीगत काव्य की निम्नांकित विशेषताएँ मिलती हैं१. जैन धर्म का प्रचार कवि का लक्ष्य होने से धार्मिकता व काव्यात्मकता का स्वतः समन्वय हो गया है। वर्णन की प्रचुरता व काव्याभिव्यंजना स्पष्ट है। काव्य का प्रारंभ वक्ता-श्रोता योजना से नहीं हुआ है फिर भी बीच-बीच में गुरु-शिष्य संवाद, वक्ता-श्रोता योजना का ही लघु रूप है। ३. ग्रंथ का प्रधान रस शांत है। वीर एवं शृंगारादि सहायक रस सिद्ध हुए हैं। ४. आधिकारिक कथा के रूप में अवतार राम की कथा है, मध्य में तीर्थंकरों, चक्रवर्ती राजाओं आदि के उपाख्यान भी मौजूद हैं। आलौकिक एवं अतिमानवीय कार्यों का समावेश सामान्य ही हुआ है। जैन धर्म की प्रशंसा में कवि ने कोई कसर नहीं रखी है। अनेक स्थलों पर पर-धर्म निंदा की व्यंजना भी स्पष्ट है। संपूर्ण काव्य को उपदेशपरक कहा जा सकता है। सृक्तियों का वाहृल्य है। 166
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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