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________________ ३ इसकी प्रेमकथा के अंतर्गत स्वप्नदर्शन, गुण श्रवण, चित्रदर्शन तथा प्रथम साक्षात्कार आदि वर्णित होते हैं। अनेक समस्याओं को पार कर नायक-नायिका का विवाह होता है। जैन चरितकाव्य का नायक अंत में जैनधर्म में दीक्षित हो जाता है। इन काव्यों की वक्ता-श्रोता योजना के अनेक रूप हैं, यथा- १. धर्मगुरु व शिप्य, कथाविद् और भक्त, श्रावक व श्रोता; २. शुक-शुकी, शुक-सारिका, शृंग-भंगी, अर्थात् वक्ता पक्षी व मानव श्रोता के बीच; ३. कवि व कविपत्नी या कवि व शिप्य । चरितकाव्यों में "साहसपूर्ण, आदर्शोत्पादक, रोमांचक एवं अलौकिक कार्यों व वस्तुओं का समावेश व कथानक रूढ़ियों की अधिकता रहती है।" इन काव्यों का कथानक स्फीत, विश्रृंखल, गुंफित एवं जटिल होता है। ६. इनकी उदात्त शैली में सरलता, सादगी व सामान्य जनता के लिए आकर्षण होता है। चरितकाव्य का उद्देश्य-प्रधान काव्य उपदेशात्मक, प्रचारात्मक या प्रशस्तिमूलक प्रतीत होना हैं। पौराणिक शैली के चरितकाव्यों को महाकाव्य मानकर डॉ. रमाकांत शुक्ल ने अपना वर्गीकरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है । : प्रबंध काव्य : (१) महाकाव्य (२) खंड काव्य (क) चरितकाव्य (क) चरितकाव्य (१) पौराणिक (ख) चरितेतर काव्य (२) ऐतिहासिक (३) रोमांसिक (ख) चरितेतर काव्य उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् यह निर्णय सहज ही होता है कि त्रिषष्टिशलाकापुरुष, चरित महाकाव्य के अंतर्गत आने वाले पौराणिक चरितकाव्य का भेद है । संस्कृत-पौराणिक काव्य की विशेषताएँ : संस्कृत के पौराणिक काव्य की विशेषताएँ संक्षेप में निम्न लिखित हैइन काव्यों में धार्मिककता एवं काव्यात्मकता का सामंजस्य होता है। धर्म प्रचार की तीव्र भावना के साथ उच्च काव्यप्रतिभायुक्त इन काव्यों में वर्णन प्रचुरता, निपुणता-प्रकाशन तथा शास्त्रीय विचारधारा की काव्यात्मक अभिव्यंजना रहती है। 165
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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