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________________ कार्य करो सीता बोली-- यह सब मेरे पूर्व-कर्म के दाप हैं, आपका नहीं। अब मैं इन कर्मों की नाशक प्रवच्या को ग्रहण करूँगी। यह कह सीता ने अपनी मुप्टि से केश खींचकर गम को अर्पित किए। राम यह देख मूर्छित हो गए। तब सीता ने जयभृपण मनि के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की एवं सुप्रभा साध्वी की शिष्या बन गई। 47 (च) जयभूषण मुनि द्वारा पूर्वभव सुनाना एवं लक्ष्मण पुत्रों व हनुमानादि की दीक्षा : लक्ष्मण ने राम को सांत्वना दी एवं समझाया। अब राम एवं लक्ष्मण मुनि जयभूषण के पास गए। धर्मोपदेश की समाप्ति पर राम ने मुनि से पूछा- हे प्रभा. में आत्मा को नहीं जानता,. मैं भव्य हूँ या अभव्य. कृपया कहो। 4 मुनि ने कहा- भव्य हो एवं इसी जन्म में मुक्ति को प्राप्त करोगे। विभीषण ने मुनि से पूछा, हे मुनि, पूर्वजन्म के किस कर्म से रावण ने सीताहरण किया एवं लक्ष्मण ने उसे मारा। सुग्रीव, भामंडल, लवण, अंकुश एवं मैं आदि किस कर्म से राम के प्रति आग्रहयुक्त हैं। तब मुनि जयभूपण ने सुग्रीव, सीता, रावण, विभीषण, लक्ष्मण, विशल्या, भामंडल, लवण, अंकुश, सिद्धार्थ आदि के पूर्वभव को सुनाया। 499 मुनि के वचनों को सुनकर सेनापति कृतांतवदन ने उसी समय दीक्षा ली। 302 __ अब राम समेत सभी ने मुनि को नमस्कार व सीता का वंदन किया एवं अयोध्या आ गए। सीता एवं कृतांतवदन तपस्या करने लगे। ये दोनों तप करते हुए मोक्ष को गए। कृतांतवदन ब्रह्मलोक में गया एवं सीता साठ वर्ष तक तपस्या कर, तीस दिन-रात्रि अनशन कर अच्चुत इन्द्र हुए। 501 इधर कांचनपुर के राजा कनकरथ ने अपनी पुत्रियों मंदाकिनी एवं चंद्रमुखी के स्वयंवर में राम व लक्षमण को अपने पुत्रों सहित आमंत्रित किया। स्वयंवर में मंदाकिनी ने अनंगलवण एवं चंद्रमुखी ने अंकुश को पसंद किया। यह देख लक्ष्मण के सभी पुत्र लवणांकुश से युद्ध करने लगे परंतु लवणांकुश ने अपने भाइयों को अवध्य समझकर 502 क्षमा कर दिया। अब लक्ष्मण के पुत्रों को अपनी भूल का अहसास होते ही उन्होंने महाबल मुनि से दीक्षा ग्रहण की। 50: एक दिन भामंडल जब अपने महल की छत पर प्रव्रज्या ग्रहण करने की बात सोच रहा था तभी उस पर बिजली गिरी एवं मृत्यु को प्राप्त वह देवकुरु में पैदा हुआ। 504 इधर चैत्र माह में हनुमान चैत्य वंदना कर मेरुपर्वत से लौट रहे थे। उनकी निगाह अस्त होते सूर्य पर पड़ी। उसे देख उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया तथा नगर में आकर अपने पुत्र को राज्यासीन कर उन्होंने धर्मरत्न आचार्य से दीक्षा ग्रहण की। 50 उनके साथ साढ़े सात सौ अन्य राजाओं ने भी संयम ग्रहण किया। हनुमान ने ध्यानावस्था को प्राप्त किया एवं अव्यक्त ( मुक्त) पद को प्राप्त हुए। 109
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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