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________________ (छ) लक्ष्मण की मृत्यु, राम का अविवेकी होना, राम का मुनि बनना एवं निर्वाण : हनुमान को संयम लिए हुए देखकर राम हँसने लगे। यह देख सौधर्मेन्द्र ने सभा में कहा- लक्ष्मण से स्नेह, राम के वैराग्य में बाधा है। अतः दो देवों को माया रचने हेतु लक्ष्मण के घर भेजा। मायावी देवों ने लक्ष्मण के घर में राम की मृत्यु के वातावरण का सृजन किया। लक्ष्मण ने देखा कि अंत:पुर की स्त्रियाँ अरे राम! तुम्हारी अकाल मृत्यु क्यों हुई, इस प्रकार विलाप कर रही हैं। राम की मृत्यु के दुःख को सहन न कर सकने वाले लक्ष्मण वास्तव में मृत्यु को प्राप्त हो गए। लक्ष्मण को हकीकत मरा हुआ समझने पर देव पश्चाताप करते हुए देवलोक को गए। 527 अब लक्ष्मण की मृत्यु से चारों ओर वातावरण आक्रंदित हो उठा। तभी वहाँ राम आये एवं सभी को सांत्वना दी कि मै जिन्दा हूँ तथा लक्ष्मण अस्वस्थ है जो औषधि से शीघ्र ठीक हो जायेगा। राम ने उसी समय वैद्यों, ज्योतिषियों एवं तांत्रिकों को बुलाया पर लक्ष्मण जीवित नहीं हुए। यह देख स्वयं राम एवं शत्रुघ्न, विभीषणादि सभी रोने लगे। माताएँ विलाप करने लगीं। चारों और हा-हाकार मच गया। 528 लक्ष्मण की मृत्यु से लवणांकुश को वैराग्य उत्पन्न हो गया एवं उन्होंने पितृज्ञा लेकर अमृतघोष मुनि से दीक्षा ग्रहण की। 509 राम को अत्याधिक विलाप करते देख उन्हें विभीषणादि ने समझाया कि हे प्रभु आप तो घीरों में भी धीर हैं। अधैर्य का त्याग कर अब लक्ष्मण की अंतिम क्रिया कीजिए। राम बोले- "तुम सब लुच्चे हो, झूठे हो, मेरा भाई जिन्दा है'। अब राम लक्ष्मण की मृतदेह को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे। 510 कभी वे उस शव को स्नान करवाते, कभी भोजन करने हेतु आग्रह करे, कभी चुम्बन करते तथा अपने साथ सुलाते। इस प्रकार की विकल चेष्टाओं में राम ने छ: माह व्यतीत किए।" ऐसी परिस्थिति देखकर इन्द्रजीत एवं सूंद राक्षस ने राम पर आक्रमण किया परंतु जटायु देव ने उन्हें भगा दिया। फिर उन सबने अतिवेग मुनि से दीक्षा ग्रहण की। 512 अब राम के अविवेकी कार्य को देखकर जटायु देव से कहा कि अरे मूर्ख! यह असफल प्रयोग सफल कैसे होंगे। इसी प्रकार कृतांतवदन के कंधे पर मृत स्त्री को देखकर भी राम ने उसे कहा कि- मूर्ख! मृत देह को लिए क्यों घूम रहा है ? तब जटायु देव व कृतांतवदन ने उन्हें समझाया कि आप सत्य हैं, परंतु हे राम, आप इस मृत लक्ष्मण को लेकर छ: माह से क्यों घूम रहे हो? तब राम को संज्ञा प्राप्त हुई एवं उन्होंने लक्ष्मण का अंतिम संस्कार किया। अव राम ने शत्रुघ्न को राज्य ग्रहण करने का आदेश दिया परंतु शत्रुघ्न ने दीक्षा लेने की अनुमति मांगी। इसपर राम लवणपुत्र अनंगदेव को राज्य देकर स्वयं महामुनि सुव्रत के पास पहुँचे। 110
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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