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________________ १४०/तीर्थंकर चरित्र सामने कर दी। नेमिकुमार ने सहज मुस्कान के साथ बायें हाथ से हरे वृक्ष की टहनी की तरह उसे पकड़ कर बिना किसी श्रम के झुका दी। यह देख सब विस्मित हो उठे। __इसके पश्चात् श्री कृष्ण के आह्वान पर नेमिकुमार ने अपनी सुदृढ़ भुजा सामने की । वासुदेव कृष्ण ने पहले बायें हाथ से भुजा को झुकाने का प्रयत्न किया, किन्तु असफल रहे। फिर दायें हाथ से प्रयत्न किया, फिर भी वह नहीं झुकी तब दोनों हाथों से पकड़ कर उन्होंने जोर लगाया। उधर नेमिकुमार ने भुजा को कुछ और ऊंचा कर दिया तो श्री कृष्ण उस पर झूलने लगे। चारों ओर नेमिकुमार के बल की प्रशंसा होने लगी। कृष्ण ने नेमिकुमार को छाती के लगाकर कहा- 'ऐसा बलिष्ठ मेरा अनुज है, फिर मेरे राज्य पर कौन अंगुली उठा सकता है ? मुझे गर्व है अपने भाई पर !' रुक्मिणी आदि का नेमि के साथ बसंतोत्सव श्रीकृष्ण ने अपने अंतःपुर के रक्षकों को आदेश दिया कि कुमार अरिष्टनेमि को बिना किसी रोक-टोक के आने-जाने दिया जाये। कुमार सहज एवं निर्विकार भाव से सर्वत्र विचरण करते । रुक्मिणी आदि रानियां उनका बड़ा सम्मान करती। वासुदेव ने सोचा- 'नेमिकुमार की शादी कर इसे दाम्पत्य जीवन में सुखी देख सकू तभी मेरा राज्य व भ्रातृ प्रेम सही अर्थ में सार्थक हो सकता है। कुमार निर्विकार है। इसे भोग-मार्ग की ओर आकर्षित करना आवश्यक है। श्रीकृष्ण ने यह कार्य रुक्मिणी, सत्यभामा आदि रानियों को सोंपा। रानियों ने मिलकर एक दिन नेमि कुमार से कहा-'देवर जी ! तुम्हारे साथ जल क्रीड़ा करने की अभिलाषा है, भाभियों का मन तो रखना ही होगा। भाभियों के आग्रह को नेमिकुमार टाल नहीं सके। सरोवर में भाभियों के साथ वे काफी समय तक खेलते रहे । खेल-खेल में रुक्मिणी आदि रानियों ने आग्रह किया- 'तुम्हें विवाह करना होगा | यादव वंश के कुल-मणि होकर कुंवारे फिरते हो, सबको लज्जा आती है। कुलीन लड़के समय पर विवाह कर लेते हैं हमें भी देवरानी चाहिये । बोलो, स्वीकार है न हमारा प्रस्ताव ?' - नेमिकुमार मुस्कराते हुए भाभियों के आग्रह को सुन रहे थे । अवसर देखकर कृष्ण भी बोले- 'अनुज ! भाभियों की मनुहार व हम अग्रजों का मन ठुकराना नहीं है चाहिए।' भगवान् नेमिकुमार ने अवधिज्ञान से देख लिया था कि विवाह की तैयारी ही मेरी दीक्षा का निमित्त बनेगी। फिर इन्कार क्यों करूं? मनुहार करते हुए कृष्ण महाराज और रानियों ने पूछा, “क्यों, तैयारी करें ?" नेमिकुमार ने कहा- 'हां'। विवाह की स्वीकृति मिलते ही चारों ओर प्रसन्नता छा गई। वासुदेव कृष्ण अनेक राजकन्याओं के बारे में सोचने लगे। महारानी सत्यभामा ने कहा- 'मेरी छोटी बहिन राजीमती नेमिकुमार के लिए सर्वथा उपयुक्त है।' श्री कृष्ण को यह प्रस्ताव
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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