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________________ भगवान् श्री अरिष्टनेमि/१३९ उठाकर बजाने लगे । शंख के गंभीर घोष से पूरी द्वारिका नगरी दहल उठी। अनेक लोग मूच्छित हो गये । वासुदेव कृष्ण और बलभद्र भी तत्काल शस्त्रागार की तरफ दौड़े। सोचने लगे- यह दूसरा वासुदेव कहां से आ गया ? क्या हमारी स्थिति समाप्त हो रही है? अथवा हम अब वासुदेव नहीं रहे हैं? आयुधशाला में पहुंच कर उन्होंने देखा तो पाया कि नेमिकुमार वहां घूम रहे थे। शस्त्र-संरक्षक से ज्ञात हुआ कि शंख नेमिकुमार ने बजाया था। 11 TIMnni 4.utu.be mc. WinTINUE Sy वासुदेव कृष्ण सोचने लगे-'पांचजन्य शंख जिसे वासुदेव ही बजा सकता है, मेरे अग्रज बलराम जी भी उसे नहीं बजा पाते, उस शंख को इतनी प्रखरता से बजा देना तो सचमुच अद्भुत पराक्रम का काम है। किसी दिन यदि नेमि के मन में राज्य-प्राप्ति की भावना जाग गई तो मैं इसे दबा नहीं सकूँगा । मुझे पता लगाना चाहिए कि वास्तव में शक्ति मुझ में अधिक है या इसमें ?' दो-चार दिन बाद वासुदेव कृष्ण ने अरिष्टनेमि से कहा- 'हम मल्ल-शाला में बाहु नमन प्रतियोगिता करें, देखें कौन किसकी भुजा को नमाता है।' नेमिकुमार की स्वीकृति पाकर दोनों मल्ल-शाला में गये। अनेक यादव प्रतियोगिता देखने एकत्र हो गये। पहले श्री कृष्ण वासुदेव ने अपनी प्रचंड दाहिनी भुजा फैलाकर
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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