SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् श्री अरिष्टनेमि/१४१ उचित लगा। तत्काल उग्रसेन राजा से पुत्री की याचना की गई। उग्रसेन ने कहा'मेरा सौभाग्य है, मेरी एक पुत्री पहले ही आपके महल में है, अब दूसरी भी वहां नेमिकुमार की जीवन संगिनी बनेगी, पर मेरी एक शर्त है कि मेरे यहां आपको बारात लेकर आना होगा। मैं वहां आकर अपनी लड़की नहीं दूंगा।' श्री कृष्ण ने यह बात मान ली। कृष्ण महाराज शीघ्रता से विवाह की तैयारी करने लगे। उन्हें भय था कहीं नेमिकुमार नकार न जाए। इस भय से चातुर्मास में ही श्रावण शुक्ला छठ की निश्चित तिथि पर धूमधाम से नेमिकुमार को सुसज्जित रथ में बिठा कर समुद्रविजय आदि दस दशार्ह, श्रीकृष्ण, बलराम, तथा दृढ़नेमि, रथनेमि आदि अनेक यादवकुमार हाथी, घोड़े तथा रथों में बैठकर रवाना हो गए। ___ उधर उग्रसेन राजा ने पूरी तैयारी कर रखी थी। विभिन्न पकवानों के साथ सैंकड़ों-हजारों पशुओं को भी एकत्रित कर रखा था। नेमिकुमार की बारात उन संत्रस्त पशुओं के बाड़ों के बीच में से गुजरी । भयभीत पशुओं को देखकर नेमिकुमार ने सारथि से पूछा- 'इन पशुओं को क्यों रोक रखा है ?' सारथि ने नम्रता से निवेदन किया-'राजकुमार ! यह सब आपके लिये हैं। आपके साथ आये यादवकुमारों को इनका मांस परोसा जायेगा। ___नेमिकुमार का हृदय करुणा से भर उठा। वे सोचने लगे- ‘एक मेरा विवाह होगा और हजारों मूक पशुओं के प्राण लूटे जायेंगे। उनकी मौत का निमित्त बनूंगा मैं । नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। मुझे विवाह नहीं करना है। उन्होंने सारथि से कहा- 'रथ को वापिस द्वारिका की तरफ मोड़ दो। सारथि ने रथ को मोड़ दिया। नेमिकुमार ने प्रसन्नमना शरीर पर से सारे आभूषण उतार कर रथिक को दे दिये। नेमिकुमार का रथ मुड़ते ही, बारात की सारी व्यवस्था लड़खड़ा गयी। कृष्ण व बलराम आदि सभी ने आकर पुनः बार-बार समझाया । नेमिकुमार दृढ़ता से इन्कार कर द्वारिका आ गए और वर्षीदान दिया। अभिनिष्क्रमण यात्रा भगवान् नेमिकुमार की विरक्ति से सब विस्मित थे। परम सुन्दरी राजीमती जैसी युवती को बिना शादी किये ही छोड़ देना प्रबल आत्मबल का कार्य था। अनेक युवकों ने भी उनकी विरक्ति से स्वयं विरक्त होकर तत्काल नेमिकुमार के साथ दीक्षित होने की घोषणा कर दी। निश्चित तिथि सावन शुक्ला छठ को उत्तरकुरु नामक शिबिका में बैठकर उज्जयंत (रवतगिरि) पर्वत पर सहस्राम्र उद्यान में आये । प्रभु की निष्क्रमण यात्रा में अपार मानवमेदिनी और चौसठ इंद्रों के साथ अनगिनत देवाण सम्मिलित हुए। शोभा-यात्रा में सनत्कुमारेन्द्र प्रभु पर छत्र करते हुए चलने लगे। शक्रेन्द्र और
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy