SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् श्री शातिनाथ/१०९ को राज्य भार सौंपा और युवराज दृढ़रथ के पुत्र रथसेन को युवराज पद पर अधिष्ठित किया। ___ महाराज मेघरथ ने अपने लघु भ्राता दृढ़रथ, सात सौ पुत्रों तथा चार हजार राजाओं के साथ तीर्थंकर धनरथ के समीप दीक्षा स्वीकार की। एक लाख पूर्व तक विशुद्ध संयम का पालन किया और तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया। अंत में अनशन पूर्वक समाधि मरण प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव बने । , दृढ़रथ मुनि भी विशुद्ध संयम का पालन कर सर्वार्थसिद्ध में तेतीस सागरोपम की आयु वाले देव बने। जन्म तेतीस सागरोपम का सर्वोत्कृष्ट देवायु भोगकर वे इसी भरत क्षेत्र की हस्तिनापुर नगरी के नरेश विश्वसेन के राजमहल में महारानी अचिरा देवी की कुक्षि में अवतरित हुए। महारानी को आए चौदह महास्वप्नों से सबको ज्ञात हो गया कि जगत्-त्राण महापुरुष प्रकट होने वाले हैं। __गर्भकाल पूरा होने पर ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी की मध्य रात्रि में भगवान् का जन्म हुआ। उस समय चौदह रज्ज्वात्मक लोक में अपूर्व शांति फैल गई। प्रभु के जन्म के समय दिशाएं पुलकित व वातावरण में अपूर्व उल्लास था। इन्द्रों ने उत्सव किया। राजा विश्वसेन ने अत्यधिक प्रमुदित मन से पुत्र का जन्मोत्सव मनाया। नामकरण के दिन राजा विश्वसेन ने कहा- 'हमारे राज्य में कुछ मास पूर्व भयंकर महामारी का प्रकोप था। सब लोग चिन्तित थे। महारानी अचिरा देवी भी रोग से आक्रांत थी। बालक के गर्भ में आते ही रानी का रोग शांत हो गया, धीरे-धीरे सारे देश से महामारी भी समाप्त हो गयी, अतः बालक का नाम शान्तिकुमार रखा जाए। सबने उसी नाम से नवजात शिशु को पुकारा। विवाह और राज्य संचित व निकाचित कर्मों को भोगना ही पड़ता है। उन्हें भोगे बिना अध्यात्म का पथ प्रशस्त नहीं होता। भले ही पुण्य की प्रकृतियां ही क्यों न हों, कर्मों को भोगना आवश्यक है। __ शांतिकुमार तीर्थंकर बनेंगे, किन्तु इन्हें और भी कुछ बनना था । पुण्य प्रकृतियों को भोगना था। शैशव काल समाप्त होते ही राजा विश्वसेन ने उनकी यशोमति आदि कई राजकन्याओं के संग शादी की। दायित्व के योग्य समझकर समयान्तर से राजा ने राजकुमार का राज्याभिषेक किया और स्वयं ने ने व्रत अंगीकार कर लिया। __सर्वार्थसिद्ध से च्यवकर दृढ़रथ का जीव महाराज शांति की पटरानी यशोमति के गर्भ में आया। उसी समय उसने स्वप्न में सूर्य के समान तेजस्वी चक्र को आकाश
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy