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________________ ११० / तीर्थंकर चरित्र से उतर कर मुंह में प्रवेश करते हुए देखा। रानी सहसा उठी, बड़ी रोमांचित हुई । उसने अपने पति महाराज शांति को जगाकर अपने स्वप्न के बारे में बताया। महाराज शांति ने कहा- 'देवी ! मेरे पूर्व भव का भाई दृढ़रथ तुम्हारे गर्भ में आया है।' बालक का जन्म हुआ, नाम दिया गया चक्रायुध । यौवन वय में चक्रायुध का अनेक राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ । कालांतर में शांतिनाथ की आयुधशाला में चक्र रत्न पैदा हुआ। चक्र की सहायता से आठ सौ वर्षों में छह खंड़ों को जीत कर शांति चक्रवर्ती सम्राट् बने । दीक्षा भोगावली कर्मों का अन्त निकट समझ कर उन्होंने अपने राज्य की सुव्यवस्था करके वर्षीदान दिया। निर्णीत तिथि ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिन सहस्राम्र उद्यान में एक हजार दीक्षार्थी पुरुषों के साथ उन्होंने दीक्षा स्वीकार की। भगवान् के उस दिन बेले का तप था। दूसरे दिन मन्दिरपुर नगर के राजा सुमित्र के राजमहल में परमान्न से उन्होंने बेले का पारणा किया। देवों ने उत्सव किया व दान का महत्त्व सबको बतलाया । भगवान् एक वर्ष तक छद्मस्थ साधना करते रहे। अभिग्रह युक्त तप एवं आसन युक्त ध्यान से विशेष कर्म निर्जरा करते हुए पुनः एक वर्ष बाद उसी सहस्राम्र वन में पधारे। वहीं पर शुक्ल ध्यान में लीन होकर उन्होंने क्षपक श्रेणी प्राप्त की, घातिक कर्मों को क्षीण किया और सर्वज्ञता प्राप्त की । देवों ने प्रभु का केवल महोत्सव किया। समवसरण की रचना की। देव तथा मनुष्यों की अपार भीड़ में प्रभु ने प्रथम प्रवचन दिया। प्रवचन से प्रभावित होकर अनेक व्यक्तियों ने आगार व अणगार धर्म को स्वीकार किया । भगवान् के प्रथम पुत्र महाराज चक्रायुध ने अपने पुत्र कुलचंद्र को राज्य भार सौंप कर भगवान् के पास दीक्षा ली और प्रथम गणधर बने । निर्वाण जीवन के अन्त समय में आयुष्य को क्षीण हुआ देखकर प्रभु ने नौ सौ मुनियों के साथ अन्तिम अनशन किया तथा एक मास के अनशन में सम्मेद शिखर पर भव विपाकी कर्मों को क्षय कर सिद्धत्व को प्राप्त किया । निर्वाणोत्सव पर अनगिनत मनुष्यों के अलावा चौसठ इंद्र व देवगण उत्साह से सम्मिलित हुए । प्रभु का परिवार • गणधर • केवलज्ञानी ० मनः पर्यवज्ञानी ० अवधिज्ञानी ३६ ४३०० ४००० ३०००
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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