SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'ज्ञाताधर्मकथा' और 'विपाकसूत्र' में भी 16 रोगों का उल्लेख मिलता है - श्वास, कास (खांसी), ज्वर, दाह, कुक्षिशून, भगन्दर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मूर्धशूल, अरोचक, अक्षिवेदना, कर्णवेदना, कण्डू, जलोदर और कुष्ठ । (विपाकसूत्र 1, ज्ञाताधर्मकथा 13) _ 'सुखबोधा' में उस समय के मुख्य रोगों के नाम इस प्रकार गिनाये हैं -- श्वास, कास, ज्वर, दाह, हृदयशूल, भगंदर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मुखशूल, अरुचि, अक्षिवेदना, खाज, कर्णशूल, जलोदर और कोठ ।' ___ इनके अतिरिक्त दुब्भूय (दुर्भूत-ईति, टिड्डी दल द्वारा धान्य की हानि , कुल रोग, ग्रामरोग, नगररोग, मण्डल रोग, शीर्षवेदना, ओष्ठवेदना, नखवेदना, दन्त. वेदना, शोष (क्षय ), कच्छू, खसर (खसरा), पाण्डुरोग, एक-दो-तीन-चार दिन के अंतर से होने वाला ज्वर (विषम ज्वर), इन्द्रग्रह, धनुग्रंह, स्कन्दग्रह, कुमार ग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, उद्वेग, हृदयशूल, उदरशूल, योनिशूल, महामारी, वल्गुली* (जी मिचलाना) और विषकुम्भ (फुन्सी) का उल्लेख मिलता है। जुओं के काटने से क्षयरोग हो जाता है, अथवा खाने में जू पड़ जाने से वमन अथवा जलोदर हो जाता है। चिकित्सा-प्रयोग जैन आगम साहित्य में व्याधियों की औषधि-चिकित्सा और शल्यचिकित्सा का वर्णन मिलता है। औषधिचिकित्सा-वायु आदि का शमन करने के लिए पैर में गीध की टांग बांधी जाती थी। इसके लिए सूकर के दांत और नख तथा मेंढे के रोओं का प्रयोग भी किया जाता था। उर्ध्ववात, अर्श, शूल आदि रोगों से ग्रस्त होने पर साध्वी को निर्लोम चर्म में सुखबोधा. पत्र 163 सासे खासे जरे डाहे, कुच्छिसूले भगंदरे । अरिसा अजीरए विट्ठी-मूहसूले अरोयए ।। अच्छिवेयरण कंडू य, कन्नवाहा जलोदरे । कोढे एमाइणौ रोगा, पीलयंति सरीरिणं ।। १ धनुहोऽपि वातविशेषो यः शरीरं कुब्जीकरोति, बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति 313816 3 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 24, पृ. 120; जीवभिगम 3, पृ. 153; व्याख्याप्रज्ञप्ति 316. पृ. 353 । 4 बृहत्कल्पभाष्य 515870 • वही, 313907 8 निशीथचूरोपिठीका, 265 पोतियुक्ति 368, पृ. 134-अ. [ 31 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy