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________________ इस ग्रन्थ की अन्तिम पुष्पिका में लिखा है 'इति श्री खरतर गच्छीय वाचक श्री विनमैरु गणि शिष्य मांनजी विरचिते भाषा सुमति मेरु गणि तद्भ्रातृ पाठक श्री कविप्रमोद रस ग्रंथे पंच कर्म स्नेह वृन्तादि ज्वरचिकित्सा कवित्त बंध चौपई दोधक वर्णनो नाम नवमोद्देसः || 9 || खरतरगच्छ में 'युगप्रधान जिनचंद्रसूरि' का विशिष्ट स्थान है । ( जन्म सं. 1598, दीक्षा सं. 1604, आचार्य सं 1612, युगप्रधान पद सं. 1649, स्वर्ग. सं. 1670) जन्मस्थान - तीवरी के पास बडली गांब, स्वर्गवास – बिलाडा ( मारवाड ) | इनका विहार मारवाड़, गुजरात, पंजाब में रहा । सं. 1648 में मुगल सम्राट अकबर के आमंत्रण पर खम्भात से अन्य 31 जैन साधुओं सहित विहार कर लाहोर में उससे भेंट की । अपने उपदेशों से उसे प्रभावित किया और तीर्थों की रक्षा व अहिंसा प्रचार हेतु अनेक फरमान जारी कराये | राजस्थानी साहित्य में 'मान' नाम के अनेक व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है; किन्तु इनसे भिन्न आयुर्वेदज्ञ 'मान' थे । इनके नाम के साथ 'कवि और मुनि' विशेषण का ही व्यवहार हुआ है । श्री अगरचन्द नाहटा ने राजस्थानी का प्रसिद्ध शृंगारग्रन्य 'संयोग द्वात्रिंशिका', जिसे अम चंद मुनि के अनुरोध पर सं. 731 में लिखा था, के कर्ता को मानमुनि माना है; भाषाविषयक जो प्रौढत्व संयोगद्वात्रिंशिका' में है, वैसा आयुर्वेद विषयक रचनाओं में देखने को नहीं मिलता । इस ग्रन्थ में लेखक ने अपने को 'मान कवि कहा है मुनिमान की वैद्यक ग्रन्थों के रचनाकाल और इस ग्रन्थ के रचनाकाल में पर्याप्त अंतराल भी है । दूसरे 'मान' विजय गच्छीय जैन यति थे । संभवतः ये मेवाड़ के निवासी थे । इन्होंने सं 1734-40 में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के संबंध में 'राजविलास' नामक खरतरगच्छ का इतिहास, (सं. अगरचन्द नाहटा ), 1959, पृ, 193 2 इस ग्रंथ के अन्त में लिखा है 1 प्रवि सुराग सुभाषित सुंदर रूप श्रगूढ़ सरूप छत्तीसी । पंच सयोग कहे तदनंतर, प्रीति की रीति बखान तित्तीसी ॥ संवत चंद्र | समुद्र 7 शिवाक्ष 3, शशी । युति वास विचार इत्तीसी । चैत सिता सुछट्टि गिर पति, मान रची युं संयोग छ ( ब ?) तीसी ||2|| दोहा- श्रमरचंद मुनि श्राग्रहे समरभट्ट सरसत्ति । - 2 सगम बसीसीरची, श्राछी श्रानि उकत्ति 1173॥ इति श्रीम-म नकविविरचितायां संयोगद्वात्रिंशिकायां नायका नायक नाम चतुर्योन्मादः ||4 इति संगम बत्तीसी संपूर्णम् ॥ 138 } परस्पर संयोग
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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