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________________ माचीन जेन इतिहाम। ६ शंख बजाया । सभामें बैठे हुए श्रीकृष्ण अचानक इस अद्भुत कामको सुनकर व्याकुल हुए। उन्होंने अपने सेवकोंको भेजकर सब समाचार पूछा । सेवकोंने सब समाचार उन्हें सुनाया। सेवककी बातें सुनकर श्रीकृष्ण सावधान होकर सोचने लगे कि कुमारके चित्तमें बहुत दिनोंमें राग उत्पन्न हुआ है। ये महाबलवान हैं, इसलिये राज्यकी रक्षाका प्रबन्ध करना चाहिये । (९) राजा उग्रसेनके यहां जाकर भी श्रीकृष्णने उनकी सुंदर कन्या राजमती श्री नेमिकुमारको देने की याचना की। राजा उग्रसेनने प्रसन्नता सहित अपनी कन्या देना मंजर किया । शुभ घड़ी मुहूर्तमें विवाहका उत्सव प्रारम्भ हुमा । (१०) विवाह के एक दिन पहले श्रीकृष्णको लोभकर्मने सताया। उनके मनमें शंका हुई कि नेमिकुमार बड़े बलवान हैं, के मेरा राज्य लेलेंगे। तब उन्होंने श्री ने मिकुमारको विरक्त करने के लिए भनेक व्याधोंसे पशु पकड़वाकर एक बाड़ेमें बंद करवा दिये और उनकी रक्षा करनेवालोंसे कह दिया कि यदि नेमिकुमार उन्हें देखने भावें तो तुम सब उनसे कहना कि आपके विवाहमें मारनेके लिये ये पशु इकट्ठे किए हैं। (११) श्री नेमिकुमार चित्रा नामक पालकीपर सवार होकर बारात सहित उग्रसेनके द्वारपर जारहे थे । इसी समय उन्होंने घोर करुण स्वरसे चिल्ला चिल्लाकर बाड़ेमें इधर उधर फिरते हुए भयसे दीन पशुओंको देखा । उन्हें देखकर उनको बड़ी दया उत्पन्न हुई। उन्होंने उनके रक्षकसे पूछा कि यह पशुओंका समूह एक जगह
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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