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________________ - तीसरा भाग (४) एक हजार वर्षकी आपकी आयु थी और दश धनुष्य ऊंचा शरीर था। (५) मापके साथ खेलनेको स्वर्गसे देव माते थे और मापके वस्त्र तथा आभूषण भी देवलोकसे आते थे। .. (६) एक दिन मगधदेशके रहनेवाले एक वैश्यने राजगृहके स्वामी जरासिंधुसे द्वारिका नगरीकी सुंदरताका वर्णन किया। यह सुनकर जरा सिंधु क्रोधसे अंधा होगया और युद्धको चकदिया। नारदने यह खबर श्रीकृष्णको सुनाई । सुनते ही श्रीकृष्ण शत्रुको मारनेके लिए तैयार हुए। उन्होंने श्री ने मिकुमारसे कहा कि भाप इस नगरकी रक्षा कीजिए । भवधिज्ञानके धारी प्रसन्नचित्त ने मिकुमारजी मधुर नेत्रोंसे हंसे और 'ओं' कह कर स्वीकारता दी। नेमिकुमारके हंसनेसे श्रीकृष्णने बिजयका निश्चय कर लिया। . (७) एक समय माप कुमार अवस्था में अपनी भावनों ( श्रीकृष्णकी रानियों ) क साथ जलक्रीड़ा करते थे । स्नान करनेके बाद हंसते हुए उन्होंने सत्यभामासे अपनी धोती धोनेको कहा। सत्यभामाने तानेके साथ कहा-क्या आप कृष्ण हैं, जिन्होंने नागशय्यापर चढ़कर शारंग नामका तेजवान धनुष्य चढ़ाया और सर्व दिशाओंको कंपादेनेवाला शंख बजाया है । ऐसा साहसका काम मापसे नहीं होसकता। .. (८) सत्यभामाकी बात सुनकर वे मायुधशालामें आये । वहां पहिले तो वे महाभयंकर नाग शैयापर चढ़े, फिर धनुषको चढ़ाया और बादमें अपनी भावानसे सब दिशाओंको पूरनेवाला
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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