SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन इतिहास । ४ ऊंचा था। इनके चौदह रत्न और नबनिधिये मादि संपत्ति थी, जो सभी चक्रवर्तियों के प्राप्त होती हैं। इन्होंने छहों खण्डोंको विनय किया था । बत्तीस हजार राजा इनके भाधीन थे । छयानवे हजार रानियां थीं। (३) हजारों वर्षतक राज्य भोगने के बाद एक रात्रिको तारा टूटता हुआ देखकर इनको वैराग्य उत्पन्न हुआ । इन्होंने अपने बड़े पुत्रको राज्य देना चाहा । परन्तु उसने उसे स्वीकार नहीं किया, तब छोटे पुत्रको राज्य देकर वरदत्त केवलीके पास दीक्षा धारण की, और सम्मेदशिखरपर सन्यास धारण करके जयंत नामक अनुत्तर विमानमें महमिन्द्र हुए। पाठ ३। भगवाननेमिनाथ (बाईसवें तीर्थकर) (१) भगवान् नमिनाथके मोक्ष जाने के पांच लाख वर्ष बाद श्री नेमिनाथ तीर्थंकरका जन्म हुआ। (२) कार्तिक सुदी ६ के दिन आप गर्भमें आए । माताने रात्रिके पिछले पहरमें १६ स्वप्न देखे। इन्द्र तथा देवताओंने उनका गर्भकल्याणक उत्सव मनाया। गर्भ में आने के छह मास पहिलेसे जन्म होने तक रत्नोंकी वर्षा हुई और देवियोंने माताकी सेवा की। . (३) मापका जन्म शौर्यपुरके महाराजा समुद्रविजय रानी। शिवादेवीके श्रावण सुदी ६ के दिन तीन ज्ञानयुक्त हुमा । मापका; वंश हरिवंश और गोत्र काश्यप था ।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy