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________________ २२ दुसरा भाग । (९) सोलह वर्ष तक तप करने पर मिती कार्तिक सुदी बारस के दिन भगवान् के चार घातिया कर्मोंका नाश हुआ । और केवलज्ञान प्रगट हुआ । तब इन्द्रादि देवोंने ज्ञान कल्याणका उत्सव मनाया । (१०) भगवान् की सभा में इस भांति चतुर्विध संघ था । ३० कुंभार्य्य आदि गणधर ६१० पूर्वाग ज्ञानके धारी ३५८३५ शिक्षक मुनि २८०० अवधिज्ञानी २८०० केवलज्ञानी ४३०० विक्रिया रिद्धिधारी २०५५ मन:पर्यय ज्ञानी १६०० वादी ५००३० ६०००० यक्षिला आदि आर्यिकायें १६०००० श्रावक ३००००० श्राविका (११) आयुमें एक मास शेष रहने तक आपने समस्त ! आर्यखंडमें विहार किया । और जब आयु एक मासकी रह गई तब आप सम्मेदशिखर पधारे । दिव्यध्वनि होना बंद हुई । इस एक मासमें भगवान् शेष कर्मोंको नाश कर चैत्र वदी अमाबसको मोक्ष • पधारे । इन्द्रादि देवोंने आकर निर्वाण कल्याणकका उत्सव मनाया।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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