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________________ प्राचीन जैन इतिहास। २१ (३) भगवान् अरहनाथका जन्म मार्गशीर्ष सुदी चतुर्दशीको तीन ज्ञान सहित हुआ । इन्द्रादि देवोंने मेरु पर भगवानका अभिषेक करना आदि अनेक उत्सवों द्वारा जन्मकल्याणकका उत्सव मनाया। (४) भगवान के साथ खेलनेको देवगण स्वर्गसे आते थे । और स्वर्गसे ही वस्त्राभूषण आया करते थे। (५) इनकी आयु चौरासी हजार वर्षकी थी और तीस धनुष ऊँचा शरीर था । आपका वर्ण सुवर्णके समान था । (६) इकवीस हजार वर्ष तक आपका कुमारकाल था और इकवीस हजार वर्ष तक आपने मंडलेश्वर महाराज होकर राज्य किया । फिर आप छह खंड, चौदह रत्न, नवनिधिके स्वामी होकर चक्रवर्ति महाराजाधिराज हुए। और एकवीस हजार वर्ष तक चक्रवर्ति होकर राज्य किया। आपकी संपत्ति भरत आदि चक्रवर्तिके समान थी, आपकी छनंवे हमार रानियाँ थीं। (७) एक दिन शरदऋतु बादलोंके देखते देखते आपको वैराग्य हुआ। लौकान्तिक देवोंने आकर स्तुति की। फिर अपने पुत्र बिंदुकुमारको राज्य देकर आपने दीक्षा धारण की । आपके साथ एक हनार राजाओंने दीक्षा ली थी। दीक्षा दिन मार्गशीर्ष सुदी दशमी थी। दीक्षा समय आपको चतुर्थ मनःपर्यय ज्ञानकी उत्पत्ति हुई। ___(८) एक दिन उपवास कर दूसरे दिन आपने चक्रपुरके राजा अपराजितके यहाँ आहार लिया। देवोंने राजाके घर पंचाश्चर्य किये ।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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