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________________ . सर्वप्रथम बंबई के उपनगर पार्ला के चातुर्मास के दरमियान मैंने इसका अनुवाद-कार्य शुरू किया और कोई ढाई-तीन माह की अथक मेहनत के बाद इसे पूरा किया। इसके लिए मैं प्रतिदिन तीन घंटे तक नियमित रूप से काम करता था। हिंदी पांडुलिपि तैयार करना और भाषा संशोधन का दायित्व मेरे पंडित श्री नरेशचंद्र झा ने बड़ी ही लगन और उत्साह के साथ संपन्न किया। ठीक वैसे ही प्रुफ संशोधन मेरे सहयोगी मुनिचंद्र विजय गणि, बालमुनि वस्थुलिभद्र विजय एवं शालिभद्र विजय ने सफलता के साथ किया । अतः मैं उनका आभारी हूँ। इसके प्रकाशक की ज़िम्मेदारी जिसने उठाई है वह रंजनभाई परमार मेरे पुराने भक्त और हिंदी साहित्य के अच्छे ज्ञाता एवं मर्मज्ञ हैं । उन्होंने स्वेच्छया प्रकाशन का दायित्व उठाया अतः मैं उनका ऋणी हूँ। ___ अंत में वाचक वर्ग से अनुरोध है कि वे इस कथा को पढ़ें, गर्ने और जीवन में उतारें। इसमें जो खामियाँ और अच्छाइयाँ हैं, उनकी सूचना प्रकाशक को दें। सुवर्ण अहीर धर्मशाला, पूना संवत्सरी : २४८० - भानुचंद्रविजय गणि
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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