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________________ लेखकीय निवेदन जैन दर्शन में चार प्रकार के योग हैं : द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, कथानुयोग एवं गणितानुयोग । इन चारों योग से संबंधित साहित्य जैन दर्शन में विपुल प्रमाण में उपलब्ध है । वर्तमानकाल में इस ब्रह्मांड में रहे जीवात्माओं को प्रतिबोधित करने के लिए उपरोक्त योग में से पूर्वाचार्यों ने कथानुयोग का अधिकाधिक और विशिष्ट रूप से उपयोग किया है। 'सुरसुन्दरी चरित्रं' भी उसीमें से एक प्रदीर्घ कथा है । उपरोक्त कथा मूल में प्राकृत भाषा-निधि का अनमोल मोती है, जिसे कवि धनेश्वर सर्वप्रथम प्रकाश में लाए और तत्कालीन युग में लोकभोग्य बनाने का भरसक प्रयत्न और प्रयास किया। उपरोक्त कथा पद्य-साहित्य के ४००० सर्वोत्कृष्ट श्लोक समुच्चयों में वर्णनीत एवं १६ अध्यायों में विभाजित है। आज के युग में जैनधर्म, दर्शन, संस्कृति एवं साहित्य का अधिकाधिक प्रचार और प्रसार कर जैनेतर समाज एवं विदेशी जनता को भारत के एक पुरातन धर्म के प्रति आकृष्ट करने की दृष्टि से आज तक उपयुक्त साहित्य देशी भाषा-हिंदी, मराठी, गुजराती में लाने का निरन्तर प्रयत्न किया है। 'मुरसुन्दरी चरित्रं ' उसी का एक भाग है । यह संसार की एक सर्वोत्तम कथा है-कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। मैंने इसका शब्दानुशब्द अनुवाद गुजराती एवं हिंदी में करने का अल्प प्रयास किया है । अनुवाद करते समय जान-बूझकर मैंने जरा-सी भी छूट लेने का प्रयत्न नहीं किया क्योंकि मेरी यह दृढ मान्यता रही कि यह कार्य कोई प्रकांड पंडित ही कर सकता है और मैं तो अभी इस क्षेत्र में नवोदित ही हूँ, अतः मेरा यह अधिकार नहीं।
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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