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________________ सम्मति कवि धनंजय विरचित सुर-सुन्दरी चरित्रम् नामक प्राकृतिक ग्रन्थ का हिंदी अनुवाद पढ़ा। पन्यास प्रवर मुनि भानुचंद्र विजयजी ने बहुत ही सुंदर और प्रासादिक शैली में जो अनुवाद किया है उसे पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे हम किसी शीतल वृक्ष की छाँह में बैठकर किसी अधिकारी एवम् विद्वान् व्यक्ति द्वारा कही जानेवाली उद्बोधक कहानी सुन रहे हैं । इस ग्रन्थ में जो कहानियाँ हैं उन्हें पढ़ने के बाद सद्सद्विवेक बुद्धि जागृत होती है और मनुष्य की आत्मनिरीक्षण की ओर प्रवृत्ति बढ़ती है। मैं अनुवाद पढ़ते समय स्वयम् इसका अनुभव कर चुका हूँ। । कहानी कहकर किसी कठिन-से-कठिन विषय को समझाने की प्रथा बहुत प्राचीन है। यह महान कला है। सामान्य जनों के लिए और उनके हृदय तक किसी बात को पहुँचाने के लिए कहानी-विधा बहुत ही सफल सिद्ध हुई है। पंचतंत्र की कथाओं ने इतना आकर्षण पैदा किया कि उसका अनुवाद अरब और यूरोप की भाषाओं में पहुँच गया और कई सदियों तक उसने अपना आकर्षण प्रस्थापित किया । भारत में कथा-साहित्य प्राचीन और विपुल है । सस्कृत और प्राकृत में संचित कथा-निधि देशी भाषाओं के माध्यम द्वारा आम जनता तक पहुँच पाएगी तो उससे बड़ा उपकार होगा और जनता को आचार की निर्मलता बढ़ाने के लिए आधार प्राप्त होगा। ‘सुर-सुन्दरी चरित्रम्' यह सुविचार प्रसार का सत्कार्य करेगा इसमें सन्देह नहीं। मुनिश्री भानुचंद्र विजयजी ने अनुवाद-कला और प्रतिभा द्वारा प्राकृत की निधि हमारे सामने रखी है। उसका सदुपयोग करना पाठकों का कर्तव्य होगा। यह ग्रन्थ सुरुचिपूर्ण है इसमें सन्देह नहीं। ता. १०-१०-७० -गो. प. नेने प्रशासन मंत्री, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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